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क्षत्रियकंड
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विक्राल समय के प्रभाव से क्षत्रियकुंड की भी बाज यही दशा है। जिसे देखकर हमें ऐसी कल्पना भी नहीं हो सकती कि एक समय यह विशाल समृद्ध राजधानी
नगर था।
आज इसके चारों ओर छोटे-छोटे गांव बसे हुए हैं। जिनका विस्तार देखते हुए ऐसा मानना पड़ता है कि उस काल का यह विशाल कुंडपुर महानगर विनाश पाया है और उसके स्थान पर इन छोटे-छोटे गांवों ने जन्म लिया है। यानि यह गांवों की विस्तार भूमि ही प्राचीन कुंडपुर (क्षत्रियकुंड - ब्राह्मणकंड है।
जैनागम आवश्यक निर्युक्ति हरिभद्रीय वृत्ति पृ. ३७८ में गांथा नं. ४५७ में कहा है कि (भगवान महावीर का जीव) पुष्पोत्तर देर्वावमान से च्यव (मृत्यु पा ) कर ब्राह्मणकुंडग्राम नगर के कोडालगोत्रीय ब्राह्मण ऋषभदत्त की भाया दिवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षी में गर्भतया उत्पन्न हुआ ।
भगवान महावीर का गर्भनत भ्रूण का स्थानांतरण
आचारांग सूत्र टीका पृ. ३८८ में कहा है कि जम्बुद्वीप के भारतवर्ष में ....... दक्षिण ब्राह्मणकुंड सन्निवेश से (देवेन्द्र का देवदूत चलकर ) उत्तर क्षत्रियकुंडपुर सन्निवेश में आया और ज्ञान क्षत्रियों के काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रिय की भार्या वासिष्ट गोत्रीया त्रिशला क्षत्रियाणि की कक्षी में अशभ पदगलों को हटाकर शुभपुद्गलों का प्रक्षेपण करके (भगवान महावीर का भ्रूण) उन की कुक्षी में स्थापन किया ।
१. महारानी त्रिशला का दोहद
भगवान महावीर जब माता त्रिशला के गर्भ में थे तव गर्भ के प्रभाव ग माता को अनेक उत्तम दोहद (गर्भस्थ वानक के प्रभाव से कुछ पाने की इच्छा) होने लगे। उनमें से एक दोहद यह भी था कि मैं इन्द्राणी के कानों के कहन राजा सिद्धार्थ द्वारा लाये हुए पहनूं। जब इन्द्र को इम बात का पता लगा तब उसन क्षत्रियकुंड के निकट पर्वत पर इन्द्रपुर नाम का नगर बसाया और अपनी इंद्राणी. परिवार एवं बहुत देवों देवियों के साथ यहां आकर रहने लगा। जब राजा सिद्धार्थ को इस बात का पता लगा तो उस ने अपने इन द्वारा इन्द्र को कहना भजा