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क्षत्रियकर
भगवान को भी मोसाल का विदेह नाम मिला। भगवान विदेह में ३० वर्ष रहे थे। कल्पसूत्र और उसकी टीकाओं में भी यही वर्णन मिलता है। इससे स्पष्ट है कि भगवान का विदेह केसाथ विशेष संबंध था। दिगंबर आचार्य पूज्यपाद ने पस्तक दसभक्ति में और आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में भगवान का जन्म विदेह कुंडपुर में बताया है। इन सब प्रमाणों से सिद्ध होता है कि क्षत्रियकुंड मध्यप्रदेश यानि आर्यवर्त के विदेहदेश में एक नगर था।
सूत्रकृतांग और भगवतीसूत्र में भगवान को वैशालिक कहकर संबोधित किया है यानि भगवान विदेह के थे। इसलिये विदेह का वैशाली नगरी के साथ विशेष सम्बन्ध होने से वैशालिक नाम से प्रसिद्ध थे। कहने का आशय यह है कि
क्षत्रियकंड वैशाली का मुहल्ला अथवा उसके पास में एक नगर के रूप में था। (वैशाली पृष्ठ. २२-२३)
"भगवतीसूत्र में वर्णन है कि भगवान ब्राह्मणकंड के महाशैलचैत्य में पधारे।"
ब्राह्मणकुंड के पश्चिम में क्षत्रियकुंडग्राम था वहां के निवासी जमाली क्षत्रिय ने बहशालचैत्य में भगवान केपास आकर पांच सौ राजपतों के साथ दीक्षा ली। अतः क्षत्रियकुंड और ब्राह्मणकुंड पास-पास में होना संभव है।
बौद्ध शास्त्रों में वर्णन है कि राजगृही से कुशीनारा पच्चीस योजन है बीच में नालन्दा, पार्टीलगांव, गंगानदी, कोटिग्राम, नादिका, वैशाली आदि स्थान आते हैं। नादिका मांतिका का दूसरा नाम है। ये गांव दो भागों में बंटा हुआ है। बीच में तालाब है एक में बड़े पिता के और दूसरे में छोटे पिता के पुत्र रहते थे। बस यह प्रांतिकाग्राम ज्ञातक्षत्रियों का नबर पा-यही अपना क्षत्रियकंड जो वजी देश में है। बुद्ध की अन्तिम यात्रा से प्रतीत होता है कि वैशाली के दक्षिण में वैशाली और कोटिग्राम के बीच में क्षत्रियकंर वा। हमारी यह मान्यता अनेक प्रमाणों से स्पष्ट होती है।
४. आचार्य विजयेंद्र सूरि की मान्यता पर अवलोकन
अतः आचार्य श्री विजेन्द्र सूरि मानते हैं कि- १. बासुकंड या जातिका अथवा वैशाली और कोटिग्राम का कोई स्थान क्षत्रियकंड है। २. बासुकंड को विदेह की राजधानी वैशाली का एक मोहल्ला माना है।