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(XXV)
३. चीनी-बौद्धयात्री फाहियान, युद्धसांग आदि ने भारत का भ्रमण करके जैनस्मारकों, बैनस्तूपों को बौद्धस्मारक घोषित करके जैनसंस्कृति के इतिहास को भामक बना दिया।
४. वर्तमान पाश्चिमात्य एवं भारतीय इतिहासलेखकों ने अनेक जैनधर्मस्थानों को अपनी अज्ञानता के कारण बौद्धों और अन्य संप्रदायों के इतिहास के पन्नों में लिख दिया।
५. चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर के मगध जनपद में (वर्तमान में बिहार प्रांत) मुंगेर जिलांतर्गत जमुई सबडिविजन में लच्छुआड़ के निकट गंगा के दक्षिण में कंडपरनगर (क्षत्रियकंड नगर) में च्यवन, (गर्भावतार), जन्म, दीक्षा (ये तीन) कल्याणक हुए तथा गृहवास में तीसवर्ष व्यतीत किये। २. उनको केवलज्ञान ऋजुकूलनदी के तटपर जभियग्राम और निर्वाण पावापुरी में हुआ। कुंडपुर, भियग्राम और पावापुरी ये तीनों गंगानदी के दक्षिण में मगध जनपद में थे। अर्थात उनके पांचों कल्याण की गंगानदी के दक्षिण में हुए। इन सब स्थानों पर जैनमंदिरों का निर्माण कराकर उन में भगवान महावीर की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करके जैनतीर्थ स्थापित किये गये। जिन पर आज तक श्वेतांबर जैन परम्परा का स्वामित्त्व विद्यमान है।
६. लगभग १०० वर्षों से पाश्चिमात्य डा. हर्मनजेकोबी. डा. हानले आदि जर्मन-विद्वानों ने एवं उनका अंधानुकरण करनेवाले अपने ही आचार्य विजयेंद्र सूरि और पंयास मुनि कल्याणविजय एवं कतिपय दिगम्बर लेखकों तथा जैनों में ही जिनप्रतिमा उत्थापक संप्रदायों के कतिपय पदवीधारी-नामी साधुओं ने तथा कुछ जैनेतर लेखकों ने विदेह जनपद में गंगा के उत्तर में वसाढ़ आदि दो एक ग्रामों को वैशाली मानकर भगवान महावीर का जन्मस्थान स्थापित भी कर लिया और ऐसी खोखली-भ्रामक मान्यता के समर्थन में बिहार सरकार ने जन्मस्थान का शिलापट्ट भी लगा दिया।
७. इन्हीं लेखकों के आधार पर विद्यालयों, महाविद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में भी वैशाली जन्मस्थान का प्रामक प्रचार कई दशकों से चालू है।
८. इन्हीं शोधकों के आधार से अमरीकी और बरतानवी आदि विदेशी कोषकारों ने भी अपने कोषों में वैशाली को ही जन्मस्थान लिख दिया है।
९. इतना ही नहीं, इन सौ वर्षों के सर्वव्यापक प्रचार प्रसार से आज इस खोखली और प्रांत मान्यता का जैनसमाज में भी सर्वत्र व्यापक रूप से जोर पकड़ता जा रहा है।
इस प्रमाद का परिणाम क्या होगा? १. निरंतर ऐसा सर्वव्यापक गलत प्रचार चालू रहने का परिणाम यह होगा कि भगवान महावीर का वास्तविक जन्मस्थान कुंडपुरनगर एकदम भूल जाने से कि इसक्षेत्र में विद्यमान सब तीर्थस्थल विच्छेद हो जायेंगे। (सफाए-हस्ती से मिटजायेंगे) यह ऐसा अक्षम्य अपराध होगा कि जिसका कलंक टीका अनन्तकाल तक जैनसमाज के माथे पर लगा रहेगा।
२. खेद का विषय तो यह है कि सौ वर्षों से इस तीर्थोच्छेदक प्रचार होने पर भी जंगमतीर्थ कहलाने वाले चतुर्विध बैनसंघ में किसी भी पदवीधारी युगप्रधान, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणि, पंथास, प्रवर्तनी, महत्तरा आदि श्रमण-श्रमणियां अथवा