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________________ भूमिका (BLANK PAPER AND THE LETTER) कोरा कापड और पत्र पत्र (LETTER) नवम्बर १९८४ ई. को डाकिया पत्र डाल गया। खोलकर पढ़ा लिखा था श्री दुग्गड़जी धर्मलाभ दो वर्ष पहले जब आप बम्बई में हमारे पास आए थे तब आपकी सादी वेषभूषा से आपको एक साधारण व्यक्ति समझ कर हम आपकी तरफ विशेष लक्ष्य नहीं दे पाये । यद्यपि आपकी कुछ पुस्तकों का आर्डर अवश्य दे दिया था। पुस्तकें मिलने पर जब हमने आपकी पुस्तकें १. मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म, २. जैनधर्म और जिनप्रतिमा पूजन- रहस्य, ३. निग्गंदु नायपुत्त श्रमण भगवान महावीर तथा मांसाहार परिहार, ४. राजकुमार वर्धमान महावीर विवाहित थे आदि को पढ़ा तो हमें लगा कि - हमारे जैनसमाज में आप जैसे विलक्षणबुद्धि के धनी, गहन - गम्भीर आगमानुकूल तर्कसंगत लेखनशैली से शोधग्रंथों को लिखनेवाले विद्वान सद्भाग्य से आज भी विद्यमान हैं। आप जानते होंगे कि अमुकवर्षों से चरम तीर्थ पति भगवान महावीर कं जन्मस्थान के विषय में आधुनिक कुछ विदेशी तथा भारतीय विद्वानों ने नानाप्रकार की भ्रांतियों का सर्जन करदिया है। अतः भगवान के वास्तविक जन्मस्थान के निर्णय के लिए - यहां मधुवन में दिनांक २४, २५, २६ नवंबर १९८४ को अखिलभारतीय इतिहासज्ञ विद्वत सम्मेलन होने जा रहा है। अतः आपसे सादर निवेदन है कि आप इस विषय पर शोधपत्र लिखकर यथाशीघ्र हमें अथवा सम्मेलन-संयोजक के पास भेज दें। आप सम्मेलन में सक्रिय भाग लेने केलिए समय पर पधारने की अवश्य कृपा करें ताकि आप अपना शोधपत्र सम्मेलन में स्वयं पढ़ सकें। ( पत्र का सार ) उत्तराकांक्षी अंचलगच्छाधिपति आचार्य श्री गुणसागर सूरि जी के अन्तेवासी पं. कलाप्रभसागर पत्र पढ़कर मुझे लगा कि यह कार्य है तो बड़ा महत्वपूर्ण । पर इस कार्य केलिए भारत के जैनचतु घ संघ को प्रारंभ से ही सजग हो जाना चाहिए था। आज अपने समाज में प्रायः इतनी शक्ति एवं समय, धन को आडम्बरों में खर्च करने-कराने की प्रथा है, क्या ही अच्छा होता, जैनसंघ ऐसे शासनोत्कर्ष के कार्यों को प्राथमिकता देता । चलो - बेर आयद दुरुस्त आयद- जब जाने तभी सवेरा यह मानकर ही मही, अब इम कार्य की सफलता के लिए जैनसंघ दृढ़ संकल्प के साथ लग जाये तो भी अच्छा है। पर निमंत्रण पाकर मैं असमंजस में पड़ गया कि आज तक न तो मैंने कभी इम विषय पर लक्ष्य ही दिया है और न ही मुझे इस विषय की कोई जानकारी है। सम्मेलन के प्रारंभ होने में भी कम दिन रह गए हैं। शोधपत्र लिखने केलिए समय, माहित्य, पुरातत्त्व बादि सामग्री और खर्चा करने केलिए काफी छूट चाहिए इसके लिए पुग सहयोग भी चाहिए। शोधपत्र लिखने केलिए इस विषय में क्या मतभेद है, इनकी भी पूरी जानकारी चाहिए। ऐसी कोई भी सुविधा न होने से यह कार्य मेरे लिए असंभव ही (XIX)
SR No.010082
Book TitleBhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1989
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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