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इस "निधि" के पास बीस एकड़ भूमि है। मुख्य स्मारक भवन के अतिरिक्त, एक जिन मन्दिर, छात्रालय तथा विद्यापीठ एवं उपाभय आदि अनेक भवन भी बन चुके हैं। समस्त निर्माण वास्तुकला के अनुरूप भव्य और कलात्मक है। मन की शांति एवं साधना और बाराधना के लिए यह अत्यन्त उपयुक्त स्थान है। महत्तरा जी ने इस विशाल प्रांगण को "आत्म-वल्लभ-संस्कृति मन्दिर" नाम दिया था। संक्षेप में इसे "विजय-बल्लभ-स्मारक" एवं "जैन मन्दिर" भी कहते हैं। भारतीय धर्म दर्शन पर शोध कार्य करने के लिए वहां पर "भोगीलाल लेहरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान" स्थापित हो चुका है जिसके अन्तर्गत एक विशाल हस्तलिखित ग्रन्थ भंडार एवं पुस्तकालय उपलब्ध है, जिसमें हजारों हस्तलिखित ग्रंथ और प्रकाशित पुस्तकें हैं। देश-विदेश से गवेषक यहां शोध कार्य हेतु पधारते हैं। उनके आवास और भोजनादि की समुचित एवं निःशुल्क व्यवस्था यहां की गई है। शोध एवं अन्य विद्यार्थियों को अनुदान देकर ऊंची शिक्षा दिलवाई जाती है। अनेक गोष्ठियां यहां हो चुकी हैं। संस्कृत एवं प्राकृत अध्ययन तथा अध्यापन की समुचित व्यवस्था है। प्रकट प्रभावी माता पद्मावती देवी का स्मारक प्रांगण में शिल्पानुरूप निर्मित मन्दिर श्रद्धा का विशेष केन्द्र बन चुका है, जहां सभी के मनोरथ पूरे होते हैं। महत्तरा मृगावती जी की समाधि तो एक गुफा सी 'प्रतीत होती है और यात्री उसके भीतर जाकर स्वतः नतमस्त हो जाता है। चिकित्सा-हेतु एक डिस्पैंसरी भी चलाई जाती है। जैन एवं समकालीन कला का एक संग्रहालय तथा स्कूल बनाने का भी प्रावधान किया गया है।
नव-निर्मित जिन मन्दिर चतुर्मुखी है। इसमें भगवान् वासुपूज्य स्वामी मूलनायक होंगे तथा भगवान् पार्श्वनाथ, भगवान् आदिनाथ एवं भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी जी भी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान् की प्रतिमाएं अति मनमोहक हैं। मुख्य स्मारक भवन के रंगमंडप का व्यास 64 फुट है, जिसके मध्य में हमारे पूज्य जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की एक भव्य 450 प्रमाण बैठी हुई मुद्रा में मुंह बोलती प्रतिमा है। कला की दृष्टि से यह मूर्ति बेमिसाल है। रंगमंडप का व्यास 64 फुट है और भवन की ऊंचाई गुरुदेव की आयुअनुरूप 84 फुट है। आज भी आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी काल की प्राचीन शिल्पकला इस स्मारक के माध्यम से पुनः जीवित हो उठी है। समस्त भारत में पत्थर से निर्मित इस प्रकार का कलायुक्त भवन सम्भवतः दूसरा दिखाई नहीं देता। यह सुन्दर भवन भारत की राजधानी एवं पर्यटकों के लिए आकर्षक नगरी दिल्ली की शोभा बढ़ा रहा है। निकट भविष्य में अवश्य ही यह वास्तुकला के निर्माण में अभिरुचि रखने वालों एवं दर्शकों तथा गवेषकों के लिये महत्वपूर्ण केन्द्र बन जायेगा।
विजय वल्लभ स्मारक, अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त करने वाला एक सजीव एवं ज्वलन्त संस्थान यह स्मारक सदैव युगवीर आचार्य विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के उपकारों की याद दिलाता रहेगा एवं भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित स्वर्णिम सिद्धान्त-सत्य, अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह के प्रचार और प्रसार का विश्व कल्याण हेतु एक सक्रिय माध्यम तथा केन्द्र बनेगा एवं जैन समाज का यह गौरव चिहन सिद्ध होगा।