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क्षत्रियकुंड
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देवानं तणी कुखई अवतरया ठाम ।।
ते
पूरइ मुझ मन आस भावन भावई गोरडीए । गाई नितु रास वीरनाह निहालताए । ।
ते प्रतिमा वंदइ करइ सारिया सवि काम।
पांच कोश काकन्दीनगर श्री सुविधिइ जनम ।। २४ ।।
अर्थात्- राजगृही - ऋजुबालुका से तीस कोस चलकर क्षत्रियकुंड महावीर जन्मस्थान पहुंचे। कुंड के निर्मल जल से स्नान करके पूजा के धोती आदि शुद्धवस्त्र पहनकर प्रभु वरिनाथ ( भगवान महावीर) के मंदिर में श्रद्धा और भक्ति पूर्वक बड़े ठाठ-बाठ के साथ पूजा की। जहां भगवान महावीर ने बचपन में आमलिकी ( आंवला के वृक्ष पर) क्रीड़ाएं की थीं। वहां आंवले के वृक्ष को देखा। राजा सिद्धार्थ का महल भी देखा। जिन्हें देख कर भूख-प्यास मिट गई। यहां से दो कोस चल कर ब्राह्मणकुंडग्राम में पहुंचे, जहां देवानंदा की कक्षी में भगवान महावीर अवतरित हुए यहां भगवान महावीर की प्रतिमा की अर्चा-1 -पूजन- वन्दन - गीतगान गानाबजाना नृत्य आदि से भक्ति करके यह भावना की कि हे प्रभु मेरी मोक्ष पाने की भावना पूरी करो। यहां से पांच कोस चल कर नौवें तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ की जन्मभूमि काकंदी के तीर्थ की यात्रा की।
१. उपर्युक्त विवरण में १. क्षत्रियकुंडनगर जहां प्रभु का जन्मस्थान था में वि. सं. १५६५ में भगवान महावीर का मंदिर २. आंवले का वृक्ष जहा वर्धमानकुमार बचपन में बालसखाओं के साथ खेलने गये थे, ३. निर्मल जल का कुंड जहां यात्रियों ने स्नान किया. ४. राजा सिद्धार्थ का राजमहल विद्यमान थे । ध्यानीय है कि जलकुंड आज भी क्षत्रियकुंड पर्वत की तलहटी में विद्यमान है, जिस में से आज भी बहुवारि नदी निकल कर इस प्रदेश में बहती है। जिस का उल्लेख हम पहले कर आए हैं।
२. ब्राह्मणकुंड जहां भगवान महावीर देवानंदा ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित हुए थे। वहां भी यात्रियों ने प्रभु महावीर के मंदिर में बड़ी श्रा भक्ति से पूजा गीतगान आदि किए।
३. इस से स्पष्ट है कि क्षत्रियकुंड और ब्राह्मणकुड पास-पास थे. दोनों जगह भगवान महावीर के मंदिर थे।
४. यहां से पांच कोस की दूरी पर काकंदी में नौवें तीर्थंकर भगवान सुविधिनाथ का जन्मस्थान था और वहीं टीले पर इन का मंदिर था ।