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क्षत्रियकुंड
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प्रेरणा से प्रभावित होकर बिहार सरकार ने इन्हें सच्ची मानकर भगवान महावीर का जन्मस्थान वैशाली को स्थापित करने और विकास केलिए काफी प्रयत्न व प्रोत्साहन दिया है। वहां भगवान महावीर का जन्मदिन चैत्र शुक्ला १३ को भगवान महावीर की जयंती के रूप में मनाया जाने लगा है, वहां पहली जन्मजयंती के अवसर पर दस हजार लोग शामिल हुए थे और बड़े ठाठ के साथ जयन्ती महोत्सव मनाया गया था। इससे दिगम्बर संप्रदाय को डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। वह यहां जन्मस्थान मानकर भगवान महावीर का दिगम्बर संप्रदाय का मंदिर और जैन- शोधसंस्थान बनाने में सक्रिय हो गया। बिहार सरकार और श्वेतांबर जैनों ने भी इस शोधसंस्थान के निर्माण और संचालन में पर्याप्त आर्थिक आदि योगदान दिया। दिगम्बर संप्रदाय प्राचीनकाल से ही नालंदा के निकट बड़गांव को कुंडलपुर मानकर भगवान महावीर का जन्मस्थान मानता आ रहा था। पर इसके समर्थन में उन्हें कोई विशेष प्रमाण न मिल रहे थे इसलिए उनका झुकाव अर्वाचीन वैशाली को भगवान महावीर का जन्मस्थान मानने केलिये स्वाभाविक था । क्योंकि उन्हें अर्वाचीन विद्वानों और बिहार सरकार का समर्थन मिल रहा था चाहे यह मान्यता भी खोखली और भ्रांत थी।
परन्तु श्वेताम्बर जैन परम्परा के पास मगध जनपद में मुंगेर जिलांतर्गत लच्छु आड़ के निकट कुंडपुर- क्षत्रियकुंड की जन्मस्थान की मान्यता | जैन आगम शास्त्र. साहित्य २. इतिहास ३. भूगोल ४. भृतत्त्वविधा ५ पगतत्त्व ६. भाषाशास्त्र एव ७. प्राचीनकाल से ही इस महानतीर्थ पर यात्रा केलिए यात्रियों, यात्रासंधों के पधारने और लिखित समर्थित प्रमाणो के विद्यमान होने . से भगवान महावीर के समय से ही उनकी वास्तविक जन्मस्थान की मान्यता स्थाई रूप से चली आ रही है। आज भी इसे ही तीर्थ रूप मानकर हजारी जैन श्रद्धालु यहां यात्रा करने केलिए आते रहते हैं और आराधना साधना मे आत्मकल्याण कर कृतकृत्य होते हैं। तथापि स्व. आचार्य विजयेन्द्र भरि एवं स्व. पं. कल्याणविजय जी श्वेतांबर साधुओं ने भी वैशाली को जन्मस्थान मानने की आर्वाचीन खोखली और भ्रांत मान्यता का समर्थन कर दिया है तो भी श्वनावर जैनपरम्परा का झुकाव वैशाली की ओर नहीं हो सका।
आज से ३७ वर्ष पहले तपगच्छीय श्वेतांबर जैन परम्परा के स्व. मन श्री दर्शन - विजय जी ( त्रिपुटी) ने वैशाली के जन्मस्थान को अमान्य और श्वेतावर जैन परम्परा एवं जैनागमों की प्राचीन मान्यता क्षत्रियकुंड के भगवान महावीर के जन्मस्थान की पुष्टि में अकाट्य प्रमाणों से गुजराती में पुस्तक लिखकर