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६६ ऐतिहासकागे की प्रात मान्यताए प्रमाण दिये गये हैं वे सब विक्रम की नवीं से पंद्रहवीं शती के आचार्यों-विद्वानों द्वारा लिखे गये हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि जिन्हें भूगोल का भी ज्ञान नहीं था इन्होंने भगवान महावीर के मामा (दिगम्बरमंत से नाना) राजा चेटक को सिन्धदेश की वैशाली का लिखा है अतः भगवान की माता त्रिशलारानी सिन्धदेश की बेटी और महावीर सिन्धदेश के दोहित्र थे, ऐसा प्रमाणित करके अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन ही किया है। यह भी स्पष्ट है कि न तो भतकाल में न वर्तमान काल में सिन्धदेश में वैशाली नाम की नगरी का इतिहास पस्तकों में उल्लेख पाया जाता है और न ही समस्त ऐतिहासिक, भौगोलिक उल्लेखों और घटनाओं से इसकी संगति बैठ सकती है।
भगवान महावीर के समय में सिन्धु-सौवीर जनपद में परमाहर्त महाराजा उदायण का राज्य था जो विदेह जनपद की राजधानी वैशाली के महाराजा चेटक का दामाद था। जिसने भगवान महावीर से मुनि दीक्षा लेकर केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त किया था। अतः चेटक यहां का निवासी नही था। यदि चेटक का उल्लेख विदेह में किया गया है तो २५०० वर्षों तक वे लोग अनभिज्ञ कैसे रह गये थे और नालंदा के निकट बडगांव के कंडलपर को महावीर का जन्मस्थान क्यों मानते रहे?
इन लोगों ने अपनी इस अर्वाचीन मान्यता को सत्य सिद्ध करने केलिये जैन श्वेताम्बर परम्परा मान्य अर्द्धमागधी के प्राचीन आगम साहित्य के जो प्रमाण दिये हैं, उन के वास्तविक अर्थों के मनमाने अर्थ करके कितना अनचित किया है। इसका विवेचन हम आधुनिक पाश्चिमात्य एवं भारतीय विद्वानो के जन्मस्थान की मान्यता में आगे करेंगे। ३. कुछ आधुनिक पाश्चिमात्य एवं भारतीय
इतिहासकारों की प्रांत मान्यताएं हम पहले लिख आये हैं कि डा. हर्मन जैकोबी ने कोटिग्राम डा. हानले, ने कोल्लाग, पं. कल्याणविजय ने वसाढ़ को और आचार्य विजयेन्द्र सूरि ने वासुकंड, अथवा आंतिक, अथवा वैशाली और कोटिग्राम के मध्य में कोई स्थान को जो वैशाली के अन्तर्गत भगवान महावीर का जन्मस्थान माना है। यह बात भी -ध्यानीय है कि इन चारों की जन्मस्थान की मान्यता में मतैकता नहीं है। यह आश्चर्य की बात है।
१. इन की मान्यताओं को आधार मानकर कतिपय भारतीय विद्वानों ने भी इन में से किसी एक स्थान को महावीर भगवान का जन्मस्थान स्वीकार करलिया