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________________ धार्मिक सिखातों से तुल्या क्लेशों का प्रहाण करता है। यह पुण्य-सम्मार का अर्जन अधिक नहीं करता। इसकी विशेषता यह होती है कि जिस जन्म में उसे प्रत्येक बद्ध बोधि प्राप्त होती है उस जम म वह किसीको अपना शास्ता मार्ग प्रदशक अथवा गुरु नही बनाता अपितु अपने बल पर निर्वाण प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त बौद्ध टोकाओं में चार प्रकार के बद्ध बतलाय गये है१ सम्बन्न बद्ध (सर्वज्ञ बद्ध) २ पच्चेक बुद्ध (प्रत्येक बुद्ध) ३ चतु सच्च बद्ध (चतु सत्य बद्ध ) और ४ सुत बद्ध (श्रत-बद्ध)। धम्मपद के चौदहव बद्ध वर्ग म बद्ध के प्रकारों का उल्लेख तो नही मिलता है लेकिन बद्ध विनायक सम्बुद्ध श्रावक तथा गौतम श्रावक आदि विशेषणों से उसे अलकृत किया गया है जिसके विजय का फिर पराजय नही होता है जिसके विजय का कोई भागीदार इस संसार में नही हो सकता ऐसे अगम्य त्रिकालज्ञ बद्ध को आप कौनसा पथ दिखला सकते हैं। जो प्रबुद्ध और अप्रमत्त है जो ध्यान म मग्न रहनेवाले हैं जो धीमान और एका त सुख में आनद मनाते हैं ऐसे सत्पुरुषों के साथ देवता भी स्पर्धा करत है। क्योकि बद्ध का जम तथा बद्धत्व प्राप्ति दुलभ ह इसलिए कोई पाप न किया जाव भलाई की जाय और अपने मन की शुद्धि की जाय यह उपदेश सब बद्धो का ह। निन्दा न करना पात न करना भिक्ष नियमो द्वारा अपने को सुरक्षित रखना परिमाण जानकर भोजन करना एकान्त में सोना-बैठना चित्त को योग म लगाना यही बद्धो का शासन ह । उत्तराध्ययनसूत्र में भी चार प्रत्येक बद्धों का उलेख मिलता है यथा(१) करकण्डु (कलिंग का राजा) (२) द्विमुख (पचाल का राजा ) १ डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स मलाल शेखर माग २ १ २९४ तथा उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययन आचाय तुलसी पृ ३५ । २ धम्मपद १८७ ५८ ५९ । ३ वही २९६-३ १ तक। ४ वही १७९ १८ । ५ वही १८१ । ६ वही १८२ १८३ । ७ बही १८५.
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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