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________________ प्राक्कथन सभ्यता के इतिहास म धर्म का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रहा ह । इहलोक और परलोक दोनों से सम्बन्धित जीवन के प्राय सभी कायकलाप धर्म से प्रभावित होत रहे है । लोकतात्रिक भावना विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने अवश्य इसके प्रभाव म कमी की है लेकिन आज भी बहुत से देशो म धम का यापक प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। हमारे देश म भी जीवन के प्राय सभी क्षत्र धम से प्रभावित हुए है। सभी धम जीवन के परम उद्दश्य की प्राप्ति पर बल देते है और उसोको दष्टिगत रखकर समाज के सघटन और उसके वाय क्षत्र का निर्धारण करते हैं। भारत म प्राचीन ब्राह्मण घम के दाशनिक और आचार-सम्बधी विचारो ने भारतीय जीवन को जो विशिष्टता प्रदान की वह तिहास का क अ य त महत्त्वपूर्ण तथ्य ह । आध्यात्मिक मायताओ सामा जिक तथा राजनी तक सिद्धा तो और सास्कृतिक जीवन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा ह । इसके साथ ही उखनीय ह कि काल और परिस्थितियाँ जिनम धर्मों का जम होता ह सदा अपरिवतनीय नही रहती। इसी कारण बदलते हुए परिवश म आवश्यक परिवतन लान के लिए सामाजिक और धार्मिक आ दालनो की आवश्यकता पडती ह । परतु कट्टरपथी धम के मल सिद्धातो को सावकालिक मानकर उनका विरोध करने म नही चकत जिसके कारण कुछ देशो को क्राति का माग ग्रहण करना पड़ा। प्राय सभी धर्मों म जगत के स्रष्टा के रूप म ईश्वर के अस्तित्व और मोक्ष प्राप्ति के साधनो का विधान है । प्राचीन ब्राह्मण धम म पुनज म कमवाद यज्ञ कमकाड और वण यवस्था आदि का काफी महत्त्व है । परन्तु ई पू छठी शताब्दी तक आते-आत वण यवस्था सामाजिक असमानता का कमकाड एव यज्ञ हिंसा और अनावश्यक धामिक कृत्यो का और ईश्वरवाद एक बाह्यशक्ति पर निभरता का द्योतक बन चका था । इन परिस्थितियो म जनघम और बौद्धधम ने प्राचीन धार्मिक मुख्यधारा से बहुत सी बातो म अपनी अलग पहचान बनाकर नय मागदशन की आवश्यकता पर जोर दिया । विभिन्नताओ के बावजद दोनो म दुख की सव यापकता उसका कारण उसके निरोध का माग और जीवन का परम उद्देश्य ~मोक्ष अथवा निर्वाण-एसे विषयों पर प्रतिपादित उनके सिद्धातो म काफी समानता है । जाति-पाति ईश्वरवाद याज्ञिकी हिंसा और कमका का विरोध तथा आन्तरिक शुद्धि एव सदाचार पर जोर धार्मिक क्षेत्र में वस्तुत क्रान्तिकारी विचार थ । सामाजिक असमानता पर प्रहार और अनीश्वर वादी दर्शन के आधार पर मनुष्य का अपने भाग्य का स्वय विधाता का सिद्धात
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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