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३ मनुष्य
ससारी जीवों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और चार दुर्लभ अगों की प्राप्ति में एक मनुष्य जन्म भी है । मनुष्य पर्याय की प्राप्ति पुण्यकर्म विशेष से होती है । उत्तराध्ययन में उत्पत्ति-स्थान की दृष्टि से सम्मूच्छित और गर्भम्युस्कान्विक ( गर्भज ) 'के ये दो भेद किये गये हैं । गर्भ से उत्पन्न होनेवाले मनुष्य तीन प्रकार के मनुष्य है— कर्मभूमिक अकमममिक और अन्तरद्वीपक । ग्रन्थ में इनके सहयागत भेदों का १५३ और २८ इस प्रकार क्रमपूर्वक वर्णन किया गया है। अन्तत तथा अधिक से अधिक तीन प योपम बतलायी गयी है इनकी आयु सौ वर्ष से कम मिलती है ।
इनकी कम-से-कम आयु
। ग्रन्थ में एक जगह
धम्मपद में प्रतिपादिता । ६३
१ चत्तारि परमगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो । माणुसत सुइ सद्धा संजमम्मि य बीरिय ॥
तथा- - दुल्लहे खल माणसे भव चिरकालण वि सव्वपाणिणां ।
२ कम्माण तु पहाणार आणपुब्बी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययतिमणुस्तय ॥ वही ३।७६२ ३ मणुया दुविह भेया उत मे कित्तयओ सुण । समुच्छिमा य मणुया गभवक्कान्तिया तहा ॥
भैया सखा उकमसो तेसि इइ एसा
४ गन्भववकात्तया जेउ तिविहा ते वियाहिया । reम्म कम्मभूमाय मन्तरद् दीवया तहा ॥
५ पन्नरस - तीस - विहा
उत्तराध्ययनसूत्र ३११ ।
३।६२ २ ।११२२।३८ ।
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वियाहिया ||
६ पालि ओवमाइ तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई मणुयाण अन्तोमूहत जहन्निया ॥
७ जाणि जीयन्ति दुम्मेहा ऊणे बासस्याउए ॥
वही ४ । ४ १६ ।
वही ३६।१९५ ।
वही ३६।१९६ ।
वही ३६।१९७ ॥
बही ३६१२ 1
वही ७।१३ ।