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२८ : बौद्ध तथा जनधर्म
और महावीर वघमान के शिष्य गौतम के एतिहासिक सवाद का उल्लेख है । पाश्वनाथ न चातुर्याम का उपदेश दिया है और महावीर ने पांच महाव्रतो का पारवनाथ ने •सल धर्म का प्ररूपण किया है और महावीर न अचेल धर्म का ।
अष्टप्रवचनमाता नामक चौबीसव अध्ययन में पाँच समितियों और तीन गुतियों का वर्णन है । वर्णित है कि जो पण्डित साथ हैं वे उक्त आठ प्रवचनमाता या पांच समिति तथा तीन गुतियो के कथन के अनुसार सम्यक प्रकार आचरण करके शीघ्रता से ससार बन्धन से छट जाते हैं और मोक्ष के अधिकारी होते हैं ।
यज्ञीय नामक पचीसव अध्ययन म सच्चा यज्ञ श्रमण ब्राह्मण मनि और कर्मानुसारी जातिवाद की परिभाषा करते हुए साध के आधार का वर्णन किया गया है । इस अध्ययन म ४५ गाथाय है । इसकी १९ से २९ गाथाओ के अन्त म त वय बम माहण पद आया है ।
छब्बीसवें अध्ययन में समाचारी के दस भेद बताये गये हैं । समाचारी का अथ है सम्यक व्यवस्था | इसम साधक के परस्पर के व्यवहारो और कतव्यो का संकेत है। इसमें ५३ गाथायें हैं ।
खलकीय नामक सत्ताईसव अध्ययन म दुष्ट बल के दृष्टान्त द्वारा अविनीत शिष्यो की क्रियाओ का वर्णन है । इसम १७ गाथाय है ।
मोक्षभाग नामक अटठाईसवें अ ययन म ३६ गाथायें हैं जिनम रत्नत्रय माग का वर्णन होने से इसका नाम मोक्षभाग -गति ह ।
स्थानो एव उनके करनेवाले हैं। इसी
सम्यक्त्व - पराक्रम नामक उनतीसव अध्ययन म ७३ फलो की विस्तृत विवेचना की गयी है जो सम्यक्त्व को पुष्ट प्रकार काल प्रतिलेखन प्रयाख्यान वाचना अनुप्रक्षा आदि विषयों का वर्णन है । तपोमागगति नामक तीसव अध्ययन में बताया गया है कि प्राणवष मृषावाद मदत मथन परिग्रह एव रात्रि भोजन से विरक्त होने से होता है।
जीव आनवरहित
चरणविधि का अर्थ है- विवकमलक प्रवृत्ति | इसमें २१ अन्तगत साध के चारित्र और ज्ञान से सम्बंधित कुछ सिद्धान्तों के आहार भय मैथन परिग्रह आदि से साध को मुक्त रहने का उपदेश
१ उत्तराध्ययनसूत्र २४।२७ ।
२ वही २६।२-४ |
३ बही ३ ।२३ ।
गाथायें हैं जिसके
वणन के साथ ही
दिया गया है।