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२६ बौद्ध तथा जनधर्म
छठे अध्ययन में १७ गाथाओं के अन्तगत जैन साध के आचार विचार का are है और इसलिए इसका नाम क्षल्लक निम्र थीय ( जैन साधु ) रखा गया है ।
सातव अध्ययन में तीस गाथाओ के अतगत इन्द्रियों क्षणिक हैं इनके विषय क्षणिक हैं । फलत इनसे मिलनेवाला सुख भी क्षणिक है । इन क्षणिक सुखों के प्रलो मनों में आकर भविष्य म होनवाले इनके दुखद परिणामों को साधक न भूले । साधक भातिवश थोड से सुख के लिए अपनी कोई बडी हानि न करे । इस विषय को इस अध्ययन में बहुत सरल सुन्दर एव व्यावहारिक उदाहरणो से स्पष्ट किया गया है ।
क्योकि आठवें अध्ययन के प्ररूपक कपिलऋषि है इसलिए इस अध्ययन का नाम कापिलीय रखा गया है। इसम कपिलमनि द्वारा चोरो को दिये गय सगोता त्मक उपदेशों का संग्रह ह । इस अध्ययन म लक्षणविद्या स्वप्नविद्या और अविद्या का उपयोग साधु के लि वर्जित बताया गया है। लोभ किस प्रकार बढ़ता है इसका अनुभत चित्र इसम खीचा गया है। इसम २ गाथाय है ।
ata अध्ययन म नमित्र या का वर्णन है जिसम राजर्षि नमि का ब्राह्मण वेशधारी इद्र के साथ आध्यात्मिक सवाद वर्णित है । इस अध्ययन म ६२ गाथाय हैं ।
आद्यपद्य के आधार पर दसव अ ययन का नाम दुमपत्रक रखा गया है जिसका अर्थ है वृक्ष का पका हुआ पत्ता । इस अध्ययन में भगवान महावीर द्वारा गौतम के बहान सभी साधको को आत्मसाघना म क्षणमात्र प्रमाद न करन का सन्देश दिया गया है । इसम अन्तमन के जागरण का उदघाष है जा प्रत्येक साधक के लिए ज्योतिस्तम्भ के समान है । इसम ३७ गाथाय है । प्रत्यक गाथा के अन्त म गोयम मापमायए तथा अन्तिम गाथा म सिद्धि गइगए गोयमे पद का उल्लेख ह । ग्यारहव अध्ययन म ३२ गाथाओ के अन्तगत विनीत को बहुश्रुत और अविनीत को बहुत कहा गया है ।
समय
हरिकेशीय नामक बारहव अध्ययन म ४७ गाथाओ के अन्तगत हरिकेशिबल और ब्राह्मणो के मध्य हुए वार्तालाप में कमणा जातिवाद की स्थापना तप का प्रकक तथा अहिंसा यज्ञ की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है ।
तेरह अध्ययन में वित्त और सम्भति नाम के चाण्डाल-पुत्रो की कथा है । इसमें ३५ गाथायें हैं । चिस और सम्भति के नाम के कारण इस अध्ययन का नाम चित्तसंभतीय रखा गया ह ।
इषुकारीय नामक चौदहव अध्ययन म ५३ गाथाय हैं जिनमें इषुकार १ उत्तराध्ययनसूत्र ७।१२ ।