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समानता और विभिन्नता २३५
ग्रहण करने लगता था तो उसके माता-पिता असह्य वेदना का अनुभव करते थे । कुछ माता-पिता ऐसे भी थे जो पुत्र के साथ ही साथ दीक्षा ग्रहण कर लेते थे । उत्तराध्य बमसूत्र के १४वें अध्ययन में प्राप्त भृगु पुरोहित की कथा से यह स्पष्ट होता है । मृगु पुरोहित के दोनों पुत्रो को जब साधुओं ने प्रतिबोध दिया वो उन्होने संयम लेने का निर्णय किया और माता-पिता को अपने इस निर्णय की सूचना दी। पहले तो माता पिता ने बहुत कुछ समझाया किन्तु जब देखा कि वे नहीं मान रहे हैं तो भृगु पुरोहित ने अपनी पत्नी यशा से इस प्रकार कहा --- जिस प्रकार वृक्ष अपनी शाखाओं से ही शोभा को प्राप्त होता है और शाखाओं के कट जान से उसकी सारी रमणीयता समाप्त हो जाती है उसी प्रकार पुत्रों के बिना मेरा इस घर में रहना अब ठीक नहीं है | जसे इस लोक म परों से रहित पक्षी सेना के बिना राजा एव जहाज के डबने से धनरहित वणिक अत्यन्त दुखी उसी प्रकार पुत्रो के अनेक प्रकार के कष्टों का अनुभव करना यह पता चलता है कि पुत्र और पति के रहना उचित नहीं समझती थी तथा इन लेती थी ।
रण म
होता है
बिना मुझे भी प्रस्तुत अन्य में प्राप्त सकेतों से
लेने पर पत्नी भी घर म सयम व्रत ग्रहण कर
पडगा । दीक्षा ग्रहण कर
दोनो के साथ ही
भाई भाई में अन् प्रेम होता था । पुरिमतालनगर के विशाल श्रेष्ठि-कुल में उत्पन्न चित्तमुनि पाँच पूवजन्मो में अपने भाई ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के साथ साथ उत्पन्न होता है परन्तु छठे जन्म में पथक पथक हो जाता है । पुन काम्पिल्यनगर म एक बार भेंट होने पर दोनो अपने सुख-दुख का हाल कहते हैं । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती अपना वैभव चित्तमुनि को देना चाहता है लेकिन वह उसमें प्रलोभित नही होता है । वह ब्रह्मदत्त को उपदेश देता है लेकिन जब वह धर्मोपदेश का पालन नहीं करता तब वह अपना उपदेश व्यथ समझकर वहाँ से चला जाता है और कठिन तपस्या के द्वारा मुक्ति
१ पहीणपुतस्स हुनत्थि वासो वासिट्ठि | मिक्लायरियाइकालो । साहाहि रुक्लो लहए समाहि छिन्नाहि साहाहि तमेव खाण || पखबिहूणोवजह पक्खी भिच्चा बिहूणो वरणे नरिन्दो | विवन्नसारो वणिजन्य पोए पहीणपुत्तो मि तहा महपि ॥ उत्तराध्ययन १४/२९ ३ तथा उत्तराध्ययनसूत्र पृ ४ १४२ ।
२ पत्नेन्ति पुत्ताय पईय मज्झ तेह कह माजुगमिस्समेक्का ।
एक परिशीलन
उत्तराध्ययन १४१३६ ।