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________________ होना है ।" इस प्रकार प्राणाविपाद का अर्थ आणियों की हिंसा से है। मनुष्य पशु पक्षी या अन्य उद्भिजनीव जो प्राण से उपेत है उनका बब ही प्राय यम है। हिंसा का विरोध सभी धर्मों में किया गया है। धम्मपद में कहा गया है कि जहाँ-जहाँ से मन हिंसा से मड़ता है वहां-वहां से दुख अवश्य ही शान्त हो जाता है । २ नवशादान विरमण बर्थात् दूसरो की सम्पत्ति के अपहरण से दूर रहना । वह व्यक्ति जो पर-सम्पत्ति के अपहरण से नितान्त दूर रहता है मरणोपरान्त देवलोक को प्राप्त होता है। बौद्ध और जैन दोनों परम्पराएं इस मत से सहमत हैं कि भिक्षु को अपने स्वामी की अनुमति के बिना कोई भी वस्तु ग्रहण नही करनी चाहिए । विनयपिटक के अनुसार जो भिक्षु बिना दी हुई वस्तु प्रहण करता है वह अपने श्रमण जीवन से च्युत हो जाता है । सयुत्तनिकाय में कहा गया है कि यदि मिक्षु फल को संचता है तो भी बोरी करता है । ३ कामेसु मिथ्याचार विरमण अर्थात कामाचार से विरत रहना । जो व्यक्ति दृढ़तापूर्वक कामाचार से विरत रहता है वह मरणोपरान्त देवलोक को प्राप्त होता है। बौद्ध एव जैन दोनों परम्पराओं श्रमण के लिए परस्त्रीगमन वर्जित है । विनयपिटक के अनुसार स्त्री का स्पर्श भी भिक्ष के लिए वर्जित माना गया है। बुद्ध ने भी इस सन्दर्भ में काफी सतर्कता बरतने का उपदेश दिया । यही कारण है कि बुद्ध ने स्त्रियों को सध में प्रवेश देने में अनुत्सुकता प्रकट की । अपने अन्तिम उपदेश मे भी बुद्ध ने भिक्षओं को स्त्री-सम्पक से सावधान किया है । भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण के पहले बानन्द न भगवान् से प्रश्न किया १ अटठसालिनी ३ | १४३ पु ८ तथा देख विभाग पृ ३८४ अर्थविनिश्चयसूत्र पू ३६ । २ यतो यतो हिंसमनो निवसति ततो सम्मति एव दुक्ख । धम्मपद ३९ । ३ विनयपिटक पातिमोक्ख पराजिकथम्म २ तथा देख अटठशालिनी ३११४४ प ८१ विभग पू ८४ । बोद्ध तथा गीता के आचार दशनों कह ३४४ । ४ सयुत्तनिकाय ११४ तथा जैन तुलनात्मक अध्ययन भाग २ प् ५ fearfree पातिमोक्स संघाविसेस धम्म २ । ६ बीम के विकास का इतिहास पु १५०-१५१ ।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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