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१४० बौद्ध तथा बेगचनं
है कि यह काया अचिरस्थायी है। मृत्यु के पश्चात जब यह शरीर श्मशान में फेंक दिया जाता है तो फूलकर उवण हो जाता है । उसमें कीट हो जाते हैं जिसे काक यूगाल खाकर क्षत विक्षत कर देते हैं । स्मृतिभाव का अभ्यासी यह देखते-सोचते हुए कि वह श्मशान भूमि में जो विवर्ण पतितकाय ह वही यह शरीर है अपन शरीर से आसक्ति का निवारण करता है । शरीर गंदगी की राशि है । जल के बुलबलो की तरह उत्पन्न विलीन होनवाला मृग मरीचिका के समान धोखा देनेवाला और क्षण भगुर है। स्मृति के द्वारा काया के प्रति ऐसे अभ्यास को कायानुपश्यना कहा जाता है । धम्मपद में कहा गया है कि जिन्ह नित्य कायगता स्मृति उपस्थित रहती है वे अकर्तव्य को नही करते और कर्तव्य को निरन्तर करनेवाले होते हैं । ऐसे स्मृतिमान और द्धिमानों के चित्तमल अर्थात् आस्रव अस्त हो जाते हैं ।
वेदनानुपश्यना का अथ वेदनाओ के प्रति जागरूकता है । यह वेदना पाँच प्रकार की होती ह - ( १ ) सुखावेदना ( २ ) सौमनस्यवेदना ( ३ ) दु खावेदना (४) दौर्मनस्यवेदना और (५) उपेक्षावेदना ।
चित्तानुपश्यना का अर्थ चित्त के प्रति जागरूकता है । चित्त अनेक प्रकार क होते हैं यथा-सराग वीतराग सदोष वीतदोष समोह वीतमोह समाहित असमाहित चित्त आदि ।
धर्मो के प्रति जागरूकता का नाम धर्मानुपश्यना ह । धम शब्द से यहाँ पाँच नीवरण ( कामच्छन्द व्यापाद स्त्यानमृद्ध औद्ध य-कौकृत्य और विचिकित्सा ) पाँच
१ यथा बढबलक पस्से यथापस्सेमरीचिक । एव लोक अवक्खन्त मचराजानपस्सति ||
धम्मपद गाथा-सख्या १७ 1
२ य सन्य सुसमारद्वानिच्च कायगतासति । अकिञ्चन्ते न सेवन्ति किन्व सात चकारिनो । सतान सम्पजानान अत्य गच्छन्ति आसवा ||
३ बोद्ध-दशन तथा अन्य भारतीय दर्शन भाग १ पृ ३६६ ।
४ बोद्ध-दशन-मीमांसा पू ५८ ।
५ मावर पितर हन्त्वा राजानो द्वे च सोत्थिये ।
arraपन्नम हत्वा अनीषो याति ब्राह्मणो ।।
वही २९३ ।
धम्मपद २९५ ।