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________________ किरण १] बाबू देवकुमारजी : एक संस्मरण बम्बई पहुँचने पर भी मगनबाई जी ने भाषा विषयक ज्ञान की जाँच के लिये तुलसीकृत रामायण की कतिपय चौपाइयों का अर्थ पूछा । यथार्थ अर्थ सुनकर सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए तथा उसी समय वर्णी जी ने संस्कृत की भी परीक्षा ली। बाबूजी इन परीक्षाफलों को अवगत कर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि इन्हें प्रौढ़ विदुषी बनाने का प्रयत्न अवश्य किया जायगा । कुछ दिनों के उपरान्त धर्मशास्त्र का शिक्षण देने के लिये उन्होंने श्री पं० लालारामजी शास्त्री को श्रारा बुलाने के लिये पत्र लिखा तथा संस्कृत शिक्षा का पूरा प्रबन्ध किया । ६६ बाबूजी की उदारता, सेवावृत्ति परोपकारता, शास्त्रीय ज्ञान, समाज की अहर्निश मंगल - चिन्ता और जैन संस्कृति के संरक्षण के लिये उत्कट भावना अनुकरणीय है । अपने परिवार से अधिक चिन्ता उन्हें समाज की थी। कभी-कभी रात को इसी चिन्ता के कारण नींद भी नहीं प्राती। घंटों बैठकर समाज के विकास और जैनधर्म के संरक्षण तथा प्रसार के लिये स्कीम बनाते रहते थे। श्री स्याद्वाद विद्यालय काशी को तो अपनी सन्तान से भी अधिक स्नेह करते थे। बाबूजी का सम्पर्क मुझे थाइे दिन तक मिल पाया, परन्तु उतने से ही मुझे जो प्रेरणा मिली उसने मेरे जीवन की दिशा बदल दी ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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