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________________ भास्कर [भाग १८ ___ श्री बा० बच्चूलालजी जो साथ ही रहते थे, तथा अवस्था और रिश्ते में भी बाबूजी से कुछ बड़े थे, कहने लगे-लड़के होकर ये सब बुड्ढ़ों की बातें छोड़ दो। तुम्हें मुनि नहीं बनना है, जिससे दिगम्बर होकर सामायिक करते हो। तुम एक जमीन्दार और रईस व्यक्ति हो, पूर्वजों की मानमर्यादा की तुम्हें रक्षा करनी है; अतः मन लगाकर कामकाज करो। आज सन्ध्या को सभी लोग कोठी वापस चलेंगे; यहाँ अब रहने की प्रावश्यकता नहीं है। जब से तुम बगीचे में आये हो एक न एक ऊट-पटांग काम करते रहते हो, न मालूम तुम्हें क्या हो गया है ? अब यहाँ से जल्द घर-कोठी वापस चलना होगा, यह मेरी श्राज्ञा है। बाबू जी श्री बच्चूलाल जी का बहुत सम्मान करते थे, बड़े होने के कारण उनकी अाशा पालन भी धर्म समझते थे। अतः सहमते हुए दवी जबान से इतना ही कहा-मामाजी मैं कोई बुरा काम नहीं कर रहा हूँ; मुनि होना सहज नहीं, बड़े सौभाग्य से इस पद की प्राप्ति होती है। यहाँ उन्मुक्त वातावरण और कोलाहल से दूर रहने के कारण मेरा मन सामायिक और श्रात्म-शोधन में ज्यादा लगता है और अब मेरी इच्छा प्रात्मकल्याण करने के लिये उत्कट हो रही है। हाँ, आप आज्ञा दे रहे हैं, तो मैं सभी लोगों के साथ आज ही कोठी चला चलूँगा। वास्तविक बात यह थी कि इधर छः सात दिनों से दोपहर को बाबूजी किसी पेड़ के नीचे बैठकर एक घंटे तक सामायिक करते थे; कभी-कभी छाया के हट जाने से धूप भी उनके ऊपर चली आती थी। श्री बच्चूलालजी, जो कि उनसे अत्यधिक स्नेह करते थे, उन्हें धूप में बैठा देखकर रुष्ट हो जाते थे। स्वास्थ्य खराब रहने के कारण बाबूजी का धूप में बैठना श्री बच्चूलालजी को बहुत खटकता था। इसी कारण उन्होंने क्रोधित होकर कोठी चलने की प्राज्ञी दी थी। . X X X X तिथि स्मरण नहीं है, पर एक दिन बाबूजी के स्नेह और सेवा का एक दृश्य मैंने विचित्र देखा। बाबूजी का हृदय बहुत ही मृदुल था, दूसरे की तनिक भी पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती थी। एक दिन एक गरीब यात्री कोठी में पाया और मार्ग व्यय की याचना करने लगा। बाबूजी ऊपर थे, अतः वह श्री बच्चूबाबू के पास गया। श्री बच्चूलालजी भी बाबूजी की अनुपस्थिति में कुछ काम कर दिया करते थे। पात्री ने रोते-गिड़गिड़ाते अपनी स्थिति उनके समक्ष प्रकट की और मार्ग व्यय के लिये १०) दस रुपये माँगे। श्री बच्चूलालजी ने सर्वदा के अनुसार ५) रुपये का बिल पास किया। यात्री अंग्रेजी नहीं पढ़ा था, अतः वह बिल लेकर श्री बन्दी बाबू के पास आया और बिल देकर रुपये माँगने लगा। श्री चन्दीबाबू ने बिल लेकर ५) रुपये उसको दिये।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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