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________________ भास्कर [भाग १ -- किया गया था। आपने उस पत्र का सम्पादन जिस योग्यता मोर क्षमता के साथ किया वह पत्रकार जगत् में सर्वदा स्मरणीय रहेगा। १२ जून १९०५ के दिन स्याद्वाद विद्यालय काशी की स्थापना के अवसर पर मापने अपने पितामह पं० प्रभुदास जी द्वारा निर्मित भदैनीघाट की विशाल धर्मशाला विद्यालय के पठन-पाठन, छात्रावास के वास्ते प्रदान कर दी, मासिक सहायता भी देते रहे, ध्रौव्य कोष में भी प्रचुर भेंट की तथा यावज्जीवन विद्यालय के मन्त्रित्व की जिम्मेदारी का भार सहते रहे। जीवन के अन्तिम समय में कई महीने श्वास रोग से पीड़ित रहे। रोगावस्था में वर्णी नेमिसोगरजी को धर्म साधन के सहायतार्थ सदा अपने पास रखते थे, बेहोशी की दवा सुंघाये जाने पर शास्त्रोपचार के अवसर पर सल्लेखना व्रत ग्रहण कर लिया; होश में आते हो अहंत शब्द उच्चारण किया। भू शय्या ग्रहण की सर्व प्रकार का खाद्य, स्वाद्य, पेय, लेह्य आहार का त्याग कर दिया। ब्रह्मचर्य व्रत तो मुद्दत पहले से ही ले चुके थे। आपने अन्तिम श्वास तक स्तोत्रादि ध्यान से सुनते-सुनते चेतनापूर्वक, धर्म ध्यान निमग्न ५ अगस्त १९०७ की रात्रि को ३२ वर्ष की युवावस्था में देवगति प्राप्त की। अल्प जीवन काल में इतना जैनधर्म का प्रचार कर किया, जितना अन्य व्यक्ति ८० वर्ष में भी न कर सके। - सिकन्दर महान , श्री शङ्कराचार्य, स्वामी रामतीर्थ, कुमार देवेन्द्र प्रसाद सब ३२ वर्ष की अवस्था में स्वर्गवासी हुए। श्री मद्रायचन्द्र, जीसज़ क्राइस्ट, विख्यात कवि (Shelley) ३३ वर्ष में संसार से विदा हुए। श्री माणिकचन्द्र वकील खण्डवा ३६ वर्ष में देह छोड़ गये। स्वामी विवेकानन्द ने ३९ वर्ष में शरीर त्यागा। जैन सिद्धान्त-भवन पारा, अनुपम, अद्वितीय अखिल भारतीय संस्था है। वहाँ एक सुन्दर विशाल सदन में शीशे की शोभनीय अलमारियों में ताड़पत्र पर खुदे हुए प्राचीन जैनागम, तथा अर्वाचीन जैन तथा अजैन साहित्य, सुसज्जितरूप से स्थापित है। Central Jaina Orienta| Library Arrah की व्यवस्था प्रशंसनीय है। बाबू देवकुमारजी ने, और उनके पुत्र निर्मलकुमार, चक्रेश्वर कुमारजी ने कई गाँव की आमदनी पारा में श्री शान्तिनाथ जिनालय तथा अन्य धार्मिक संस्थानों को समर्पित कर दी है। और उन संस्थाओं के सुप्रबन्ध की देखरेख रखते हैं। भारा जैनधर्म का पुण्य क्षेत्र है। श्री बाबू देवकुमारजी के शुभ नामपर लेखक नत मस्तक होकर शत शत प्रणाम करता है। बाबू देवकुमार सदा जयवन्त प्रवर्ते जैन शासन की जय ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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