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________________ भास्कर ___ . [ भाग १५ व्यवहार नय के स्वरूप को पाठक आसानी से समझ सकते हैं, तथा जीवन में इन दोनों का प्रयोग कर उसे उन्नत और विकसित कर सकते हैं। ग्रन्थ के प्रारम्भ में श्री बा० लक्ष्मीचन्द्र जैन एम० ए० के द्वारा लिखा गया एक वक्तव्य है, जिसमें आपने ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषय को समझाया है। पश्चात् उपोद्धात के प्रारम्भ में आचार्य कुन्दकुन्द की जीवनी और उनकी रचनाओं पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। आगे चलकर व्यवहार खण्ड में द्रव्य की व्याख्या, गुणपर्याय का विवेचन, छहकाय के जीव, अत्मा का स्वरूप, कर्मबन्धन, सर्वज्ञता, चारित्र आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है। द्वितीय पारमार्थिक खण्ड में ज्ञान और आचरण का निरूपण बहुत सुन्दर ढंग से किया है। वास्तव में इस रचना से जैनधर्म के प्रौढ़ सिद्धान्तों का ज्ञान थोड़े श्रम से प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञानपीठ ने इस ग्रन्थ का प्रकाशन कर स्वाध्याय प्रेमियों के लिये ज्ञानवर्द्धन का अच्छा साधन उपस्थित किया है। छपाई-सफाई अच्छी है, ज्ञान-पिपासुओं को मगाना चाहिये । वर्णी-वाणी [पं० श्री गणेशप्रमाद जी वर्णी के विचारों का संकलन]संकलयिता और सम्पादकः वि., नरेन्द्र जैनः प्रकाशक; श्री साहित्य-साधना समिति, जैन विद्यालय काशी; पृष्ट मख्याः २+१३३ मूल्यः एक रुपया दस पाना। पम्तक के प्रारम्भ में श्री पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री को श्रद्धाञ्जलि है. आपने व जी के जीवन की दो-एक रश्मियों का दिग्दर्शन कराया है। पश्चात श्री बालचन्द्र जैन विशारद ने वणी जी के जीवन पर यत्किञ्चित प्रकाश हाला है। पुस्तक में आत्म-शक्ति अात्मनिर्मलना, किराकुलता, गगद्र प. परिग्रह, पुरुषार्थ धर्म, त्याग की महिमा, मोक्षमाग, भक्ति का रहस्य, चारित्र का फल. श्रद्धा. मानवता. शान्ति, स्वदेश, स्वोपकार, परोपकार. आदि विषयों पर वी जी के विचारों का संकलन किया गया है। वास्तव में वीजी का लोकोत्तर व्यक्किन्व महान है, उनकी अन्तरात्मा से निकले हुए प्रवचन सारी प्राणियों के लिये अत्यन्त कल्याणकारी हैं। श्री नरेन्द्रजी ने पूज्य वर्गीजी के वचनामृतों का संकलन कर मानव समाज का महान उपकार किया है, जो व्यक्ति वर्णीजी के समक्ष नहीं रहते, वे भी उनके इम संकलन से जीवन में सम्बल प्राप्त कर सकेगें। यह केवल जैनों की वस्तु नहीं, प्रत्युत मानव मात्र के लिये स्वास्थ्यकर है। इस उपयोगी और सफल प्रकाशन के लिये संग्राहक और प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं। हपं तो इस बात का कि स्या०वि० काशी के छात्र श्री. पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री के नत्त्वावधान में ज्ञानार्जन के साथ-साथ
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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