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________________ साहित्य-समालोचना विद्या, कुल, भन, ऊर्ध्व, सम्मान, समृद्धि, आयु, सहोदर-सहोदरा, सौभाग्य, धर्म, व्रत, मार्गण आदि विभिन्न रेखाओं के फलों का निर्देश किया गया है। छोटी-सी कृति में अनेक विषयों का समावेश रचयिता के तज्ज्ञ होने का समुज्ज्वल प्रमाण है। इस रचना के प्रारम्म में डा० ए० एन० उपाध्ये का प्राक्कथन संक्षिप्त और मौलिक है, आपने सामुद्रिक शास्त्र की परिभाषा और उसके पूर्वत्य-पाश्चात्य ढाँचे में अन्तर थोड़े ही शब्दों में बता दिया है । सम्पादक की प्रस्तावना भी ग्रन्थ-परिचयात्मक है, इससे . साधारणतया विषय का ज्ञान हो जाता है। अनुवाद मूलानुगामी है, पर इसमें विषय को स्पष्ट करने के लिये हाथ के चित्रों का न देना विषय समझने में अड़चन डालता है। सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञान परिभाषाओं के आधार से कदापि नहीं किया जा सकता है, चित्रों के आश्रय से विषयानभिज्ञ भी इस विषय को समझ सकता है। इसके सिवा एक कमी यह भी रह गई है कि विषय को बिल्कुल स्पष्ट नहीं किया गया है। अन्य सामुद्रिक ग्रन्थों का आधार लेकर यदि प्रतिपाद्य विषय का स्पष्टीकरण किया जाता तो पाठकों को अधिक लाभ होता। अभी तक जैन ज्योतिष शास्त्र के अनेक ग्रन्थरत्न अप्रकाशित पड़े हैं, आज की जैन प्रकाशन संस्थाओं का ध्यान इस ओर नहीं के बराबर है। ज्ञानपीठ ने इस साहित्य के प्रकाशन का श्रीगणेश किया है, इसके लिये अधिकारी वर्ग साधुवादाई हैं। ग्रन्थ की छपाई-सफाई अच्छी हैं; अनेक त्रुटियों के रहने पर भी अपने भविष्य फल के जानने के इच्छुक व्यक्तियों को इसे मंगाकर स्वयं अपने सम्बन्ध में भावी शुभाशुभ का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये । सामुद्रिक शास्त्र से बिना जन्मपत्री के मात्र हस्तरेखाओं से अपने भविष्य को ज्ञात किया जा सकता है। कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रत्न [ पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार और समयसार का विषय परिचय ]-लेखकः गोपालदास जीवाभाई पटेल; अनुवादकः शोभाचन्द्रभारिल्ल; प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ, काशी; पृष्ठ संख्याः १४२; मूल्यः दो रुपये । ___ प्रस्तुत रचना में श्री कुन्दकुन्दाचार्य के प्रमुख तीन ग्रन्थ-पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार और समयसार का सार व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टि से संक्षिप्त और नपेतुले शब्दों में वर्णित है। यह मूल पुस्तक गुजराती में लिखी गई थी, लेखक ने पारिभाषिक और कठिन स्थलों को पादटिप्पणों द्वारा स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया है। अनुवादक श्री भारिल्लजी ने परिश्रम कर हिन्दी भाषा-भासी जनता के लिये इसे उपस्थित कर बड़ा उपकार किया है। इस पुस्तक के आधार से निश्चय नय और
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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