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________________ साहित्य-समालोचना पटखण्डागम, धवला - टीका - समन्वितः ८ वीं जिल्द - सम्पादकः श्री० प्रो० हीरालाल जैन एम० ए०, डी० लिट्, नागपुर, सहसम्पादक: श्री पं० बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री; प्रकाशकः श्रीमन्त सेठ शितावराय लक्ष्मीचन्द्र, जैन - साहित्योद्धारक फण्ड-कार्यालय, अमरावती (बरार ); पृष्ठ संख्या: २० + ३६८ + २८; मूल्य दस रुपये । यह धवला टीका की आठवीं जिल्द भाषानुवाद समन्वित हमारे समक्ष है। इसमें are स्वामित्व faar का प्ररूपण किया गया है । ग्रन्थ के आदि में इस प्रकरण के निरूपकी ओघ - गुणस्थान और आदेश - मार्गणा इन भेदों द्वारा प्रतिज्ञा की गई हैं। पश्चात् प्रथम प्रकरण में गुणस्थानों में प्रकृतिबन्ध व्युच्छेद, व्युच्छेद के भेद और उनका निरुत्यर्थ, प्रकृतियों की उदय व्युच्छिति, प्रकृतियों के बन्धोदय की पूर्वापरता, सान्तर, निरन्तर और सान्तर - निरन्तररूप से बंधनेवाली प्रकृतियों का निर्देश, ध्रुवबंधी प्रकृतियाँ, प्रकृतियों के बंध के स्वामी और तीर्थङ्कर प्रकृति के बंध के कारण आदि बातों का प्ररूपण किया गया है। दूसरे प्रकरण से लेकर ग्रन्थान्त तक चौदह मार्गणाओं में विस्तार से बन्ध स्वामित्व का विचार किया गया है। कर्मबन्ध के विषय में इस जिल्द से पूरा-पूरा ज्ञान हो सकता है । बात यह है कि बन्धन के चार भेद हैं-बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्ध विधान इस बन्ध विधान के भेद प्रकृतिबंध के मूल प्रकृतिबन्ध और उत्तर प्रकृतिबन्ध ऐसे दो भेद होते हैं । उत्तर प्रकृतिबन्ध के एकैकोत्तर प्रकृतिबन्ध और अव्वोगाढ उत्तरप्रकृति बन्ध ये दो भेद हैं। प्रस्तुतबन्ध स्वामित्व विचय एकैकोत्तर प्रकृतिबन्ध के समुत्कीर्त्तनादि चौबीस अनुयोगद्वारों में बारहवाँ अनुयोग द्वार है । इस जिल्द में धवलाकार ने तेईस प्रश्नों द्वारा स्वोदय-परोदय, सान्तर-निरन्तर, सप्रत्यय - अप्रत्यय, सादि-अनादि, ध्रुव-अध्रुव आदि बन्धों की व्यवस्था का स्पष्टीकरण किया हैं । इस जिल्द का सम्पादन अच्छा हुआ है । टीका का हिन्दी अर्थ शब्दशः दिया गया है, पर कहीं-कहीं भावानुवाद भी है । ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय प्रारम्भ में लिखा गया है । बन्धोदय -तालिका जिज्ञासुओं के लिये बड़े काम की है, इसके सहारे भीतर के विषय को सरलतापूर्वक हृदयंगम किया जा सकता है। कागज, मुद्रण तथा अन्यान्य कठिनाइयों के होने पर भी श्री प्रो० हीरालाल जी अपने सत्प्रयत्न में संलग्न हैं, इसके
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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