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________________ किरण १] दक्षिण भारत में जैनधर्म का प्रवेश और विस्तार युग के मन्दिर केवल दर्शकों की भक्ति-पिपासा को ही शान्त नहीं करते थे, बल्कि धर्म, साहित्य, संस्कृति के प्रचार के प्रमुख केन्द्र स्थान भी माने जाते थे। गंगराजारों में अवनीत के गुरु जैनमुनि कीर्तिदेव और दुर्विनीत के आचार्य पूज्यपाद थे। इस वंश का एक राजा मारसिंह द्वितीय था, यह इतना पराक्रमी और साहसी था कि इसने चे, चोल और पाण्ड्य वंशों पर विजय प्राप्त करली थी। जीवन के अन्तिम समय में इसे संसार से विरक्ति हो गई थी, जिससे इसने विपुल ऐश्वर्य के साथ राज्यपद त्याग दिया और धारबार प्रान्त के वांकापुर नामक स्थान में अपने गुरु अजितसेनाचार्य के सम्मुख समाधिपूर्वक पा!त्याग किया था। ___ गंगवंश के २१ वें गजा राचमल्ल सत्यवाक्य के शासन काल में उसके मंत्री और कवि चामुगडराय ने श्रेवणवेल्गुन स्थान में श्रीगोमटेश्वर की विशाल प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई थी। चामुण्डराय का वाग्मातगड, चूड़ामणि, समरधुरन्धर, त्रिभुवन वीर, वैरीकुलकालदगड, सत्य युधिष्ठिर इत्यादि अनेक उपाधियाँ थी। मन्त्रि प्रवर चामुण्डाय जैन. धर्म के बड़े भारी उपासक थे. इन्होंने अपना गुरु प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवर्ती को माना है। बोरता के साथ विद्वत्ता भी इनमें पूरी थी. संस्कृत और कन्नड़ दोना ही भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था। चारित्रसार संस्कृत भाषा में रना गया इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है, कन्नड़ में इन्होंने त्रिषष्ठि जना महापुराण नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ रचा है। चामुगडराय ने जनधर्म की उन्नति के लिये अनेक कार्य किये हैं। इस प्रकार गगवंश के सभी रात्राओं ने मन्दिर बनवाये, मन्दिरों का प्रबन्ध के लिये भूमि दान की और जैन गुरुयों को सम्मान देकर साहित्य और कला का सृजन कराया। दुविनीत, नागवर्म, गुगाम प्रथम चामुगडराय इत्यादि अनेक उल्लेखनीय जैन कलाकार गंगवंश के राज्यकाल में हुए हैं । ___ गंगवंशकालीन जैन साहित्य और कला---गंगराज्यकाल में संस्कृत और प्राकृत भाषा के साहित्य की विशेष उन्नति हुई। अशोक के शासन-लेखों और सातवाहन एवं कदम्ब राजाओं के सिक्कों पर अंकित लेखां से प्रकट है कि इस युग में प्राकृत भाषा का व्यवहार संस्कृत के साथ-साथ ब्राह्मगा और जैन दोनों ही विद्वान् करते थे। ७ वीं और ८ वीं शती में गंगवाडि में अधिक संख्या में आकर जैन वस गये थे, तब वहाँ संस्कृत साहित्य की पवित्र मन्दाकिनी प्रवाहित हुई; जिसकी कल-कल ध्वनि से अष्टशती, प्राप्तमीमान्सा, पद्मपुराण, उत्तरपुराण, कल्याण कारक प्रभृति रचनाएँ पस्फुटित हुई। संस्कृत और प्राकृत के साहित्य के साथ-साथ कन्नड़ भाषा को साहित्य भी उन्नति की ओर अग्रसर हो रहा था; प्राचीन कन्नड़, जो कि साहित्यिक भाषा थी, उसका स्थान नवीन कन्नड़ ने ले लिया था। इसमें पूज्यपाद, समन्तभद्र जैसे युग प्रवर्तक प्रसिद्ध आचार्यों ने भी साहित्य का निर्माण किया । इस युग में कुछ ऐसे कवि भी हुए हैं, जो दोनों भाषाओं के
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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