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________________ [ भाग १५ के प्रदेशों में जैनधर्म का प्रचार प्राचीन काल में ही था । उपर्युक्त स्थानों में हगरि श्राज भी जैनियों का पवित्र क्षेत्र माना जाता 1 ५४ भास्कर विष्णुपुराण में कहा गया है कि नाभि और मरु के पुत्र ऋषभ ने बड़ी योग्यता और बुद्धिमानी से शासन किया तथा अपने शासन काल में अनेक यज्ञ किये। चतुर्थावस्था में वह अपना राज-पाट अपने बड़े पुत्र भरत को सौंप कर सन्यासी हो गये और दक्षिण भारत में स्थित पुलस्त्य ऋषि के आश्रम में निवास किया । इससे स्पष्ट है कि प्रथम तीर्थंकर दक्षिण में गये थे । हिन्दू पुराणों में एक संवाद' आता है, जिसमें बताया गया है कि देव और असुरों के युद्ध के बीच जैनधर्म का उपदेश विष्णु ने दिया था - "बृहस्पतिसाहाय्यार्थं विष्णुना मायामोहसमुत्पादनम् दिगम्बरेण मायामोहेन दैत्यान् प्रति जैनधर्मोपदेशः, दानवानां मायामोह - मोहितानां गुरुणा दिगम्बर जैनधर्मदीक्षादानम्" । अर्थात् देव-मन्त्री बृहस्पति की सहायता के लिये विष्णु भगवान् ने मोहमाया नामक एक दिगम्बर साधु को उत्पन्न किया और दैत्यों को जैनधर्म का उपदेश उससे दिलाया, जिससे दानव दि० जैनधर्म में दीक्षित हो गये । इस संवाद में एक रहस्य यह छिपा प्रतीत होता है कि विष्णु ने दिगम्बर जैन मुनि का अवतार लेकर असुरों को दीक्षा दी। यदि यहाँ यह मान लिया जाय कि असुर जिनका यहाँ वर्णन किया गया है, वे वही लोग थे जो यहाँ के आदिम निवासी थे और दक्षिण भारत के किनारे के प्रदेशों में रहते थे। ये आदिम निवासी सभ्य, संस्कृत और स्वतन्त्र थे, दास नहीं । इन्होंने श्रयों के आने के पूर्व भारत को अपने अधिकार में कर लिया था तो इससे स्पष्ट है कि जैनधर्म का केन्द्र उस समय नर्मदा नदी के तटपर स्थित था जो कि आज भी तीर्थ स्थान के समान पूज्य 1 उपर्युक्त कथन का समर्थन काठियावाड़ में प्राप्त एक ताम्रपत्र से भी होता है । यह ताम्रपत्र महाराज नेच्चदनेज्जर प्रथम अथवा द्वितीय (ई० पू० ११४० या ई० पू० ६०० ) का है। प्रो० प्राणनाथ ने इसका वाचन करते हुए बताया था कि यह महाराजा विबलोनिया का निवासी था, वहाँ से यह द्वारिका श्राया था; यहाँपर इसने एक मन्दिर बनवाया और इस मन्दिर को नेमि या अरिष्टनेमि को अर्पण दिया । नेमि उस समय रैवत गिरि ( गिरनार ) के देव थे। इससे स्पष्ट है कि नेमि या अरिष्टनेमि जो कि जैन तीर्थंकर हैं, के प्रति नेबू की बड़ी भारी श्रद्धा और भक्ति थी । इस ताम्रपत्र में प्रतिपादित नेबू राजा को रेवानगर का स्वामी भी बताया है, संभवतः यह नगर सिद्धवर कूट के निकट का एक स्थान होगा, जो कि दक्षिण भारत में रेवा नदी के तटपर स्थित है । १ विष्णुपुराण अध्याय १७, मत्स्यपुराण अ० २४, पद्मपुराण अध्याय १ और देवीभागवत स्कन्ध ४, २०१३ 1. See Indian Culture April 1938. P. 515, and Times of India, 19th March, 1935, P. 9
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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