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________________ १० भास्कर [भाग १५ (४) अवरुद्धाः स्त्रियः स्वयं नश्यन्ति स्वामिनं वा नाशयन्ति ॥२१॥ (नोतिवा० पृ० २२७) व्युत्पादयेत्तरां धर्म पत्नी प्रेम परं नयन् । सा हि मुग्धा विरुद्धा वा धर्माद् भ्रंशयतेतराम् ।। (सागार० ३, २६) (५) ब्राह्म मुहूर्ते उत्थायेति कर्तव्यतायां समाधिमुपेयात् ॥१॥ (नीतिवा० पृ० २५१) ब्राह्म मुहूर्ते उत्थाय वृतपंचनमस्कृतिः । कोऽहं को मम धर्मः किं व्रतं चेति परामृशेत् ॥१॥ (सागार० ६, १) (६) धर्मसन्ततिरनुपहता रतिगृहवा सुविहितत्वमाभिजात्याचार विशुद्धिदेव द्विजातिथिबान्धवसत्कारानवद्यस्वं च दारकर्मणः फलम् ॥३०॥ (नीतिवा० पृ० ३७८) धर्मसन्ततिमक्लिष्टां रतिं वृत्तकुलोन्नतिम् । देवादिसत्कृति चेच्छन् सत्कन्यां यत्नतो वहेत् ॥ (सागार, २, ६०) (७) गृहिणी गृहमुच्यते न पुनः कुड्यकटसंघातः ॥३१॥ (नीतिवा० पृ० ३७८) गृहं हि गृहिणीमाहुन कुड्यकटमंहतिम् ।। (सागार, २. ५६) (८) पक्वान्नादिव स्त्रीजनादाहोपशान्तिरेव प्रयोजनम् ॥२७॥ (नीतिवा०पू०३८६) भजेद्देहमनस्तापशमान्तं स्त्रियमन्नवत् ॥ सागार०३, २६) नीतिवाक्यामृत के टीकाकार का प्रमाद श्री माणिकचन्द ग्रन्थमाला से प्रकाशित नीतिवाक्यामृत की भूमिका में श्री प्रेमीजी ने 'टीकाकार' शीर्षक स्तम्भ के भीतर टीकाकार के विषय में लिखा है कि वे बहुश्रुत विद्वान् थे और एक राजनीति के ग्रन्थ पर टीका लिखने की उनमें यथेष्ट योग्यता थी। इस विषय के उपलब्ध साहित्य का उनके पास काफी संग्रह था और टीका में उसका पूरा पूरा उपयोग किया गया है" । सटीक नीतिवाक्यामृत का पारायण करने के बाद उक्त बात पाठकों के हृदय पर अंकित हए,
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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