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________________ किरण 1 'चन्द्र गप्त-चाणक्य इतिवृत्त के जैन प्राधार' कालान्तर में, प्राचीन जैन विद्वानों ने, जिन्होंने निश्चय ही जैन श्राम्नाय में गरु परम्परा से चले आये उक्त कथानकों को विश्वस्त रूप से सुरक्षित रक्खा था, उन्हें विविध उपाख्यानों के संवर्धन से विकसित किया, ये कथानक अथवा उपाख्यान इस प्रकार अनेक शताब्दियों तक वाचक गुरुओं की परम्परा में मौखिक द्वार से स्मृति में सुरक्षित रहते चले आये । कितने काल तक चन्द्रगुप्त-चाणक्य सम्बंधी अनुश्रुतियाँ केवल स्मृति में ही सुरक्षित रहती रहीं, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, किन्तु यह सम्भव नहीं है कि ऐसा देवर्द्धि क्षमा श्रमण की प्रसिद्ध बल्लभी वाचनाके- जो वीर निर्वाण (लगभग ४८६ ई० पू०) से १८० अथवा ११३ वर्ष पश्चात् हुई थी-उपरान्त रहा हो। यह वाचना श्वेताम्बर सिद्धान्त और उसकी व्याख्याओं के संकलन एवं लिपिबद्ध करने के लिये हुई थी। चन्द्रगुप्त सम्बन्धी अनुश्रुति का सर्व प्रथम लिखित रूप संभवतया आवश्यक नियुक्ति की चूणि' में उपलब्ध होता है। उसके आधार पर सन् ७४०-७७० ई० के बीच किसी समय विद्याधर कुल (गच्छ) के प्रसिद्ध जैन टीकाकार हरिभद्रसूरि ने चन्द्रगुप्त चाणक्य की कथा को बड़े विशद रूप में वर्णन किया और उसमें बहुत-सी प्रसंग की बातें भी सम्मिलित की, किन्तु ऐसा जो कि विश्वास किया जाता है, उन्हें उस सम्बंध में मौखिक परम्परा से प्राप्त हुई थी। यह कथा श्वेताम्बर आगम के द्वितीय मूलसूत्र 'आवश्यक' पर उनके द्वारा संस्कृत में रची गई आवश्यक सूत्रवृत्ति' में उपलब्ध होती है। उसके लगभग तीन शताब्दी पश्चात् श्वेताम्बरों के प्रथम मूलमुत्त 'उत्ताध्ययन' पर अपनी व्याख्या में देवेन्द्रगगि ने यह कथा प्राकृत भाषा में नये शिरे से लिखी, जिस के बीच बीच में उन्होंने प्राकृत एवं संस्कृत पद्यों का भी समावेश किया। उनकी यह टीका 'सुख चोध' नाम से प्रसिद्ध है और सन् १८८३ ई० में समाप्त हुई प्रतीत होती है। यह बात सुस्पष्ट है कि देवेन्द्रगणि ने 'आवश्यक वृत्ति' में वर्णित चन्द्रगुप्त-चाणक्य की कथा की उपेक्षा की, किन्तु साथ ही साथ यह बात भी उतनी ही सत्य है कि उन्होंने अपने कथानक को मूलतः 'आवश्यक चूगिण' पर अधारित किया, जिसमें से उन्होंने अपनी कथा का प्रकृत पाठ बहुलता १ इस विद्वान् लेखक के मतानुसार महावीर निर्वाण सन् ४८६ ई० पूर्व में हुआ था। किन्तु प्रबल प्रमाणाधारों से यह बात भली प्रकार सुनिश्चित हो चुकी है कि महावीर निर्वाण ५२७ ई० पूर्व में हुआ था। (ज्यो. प्र. ज.) २ श्रावश्यक नियुक्ति चूर्णि-पृ. ५६३-५६५ (जैन बंधु प्रिटिंग प्रेस इन्दौर १९२८ ई०) नोट-यह बात केवल श्वेताम्बर अनुश्रुति के लिये कही जा सकती है, क्योंकि दिगम्बर अनुश्रुति (कथासाहित्य) एवं आगमों का लिपि बद्ध होना तो पहली शताब्दी ई० पूर्व से ही प्रारंभ होगया था। श्वे. आगमों पर नियुक्तियों बराहमिहिर ज्योतिषी के भाई श्वे. प्राचार्य भद्रबाहु द्वारा ६ ठी शताब्दी ईस्वी में रची गई. तदनन्तर चूर्णियाँ बनी। (ज्योत प्र. जै०)
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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