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________________ किरण १ ] 'चन्द्रगुप्त चाणक्य इतिवृत्त के जैन आधार' चन्द्रगुप्त की सहायता से नाश को प्राप्त हुआ । इस प्रकार बौद्ध अनुश्रुति से भी चन्द्रगुप्त चाणक्य की जीवन सम्बन्धी घटनाओं पर विशेष अधिक प्रकाश नहीं पड़ता, और फिर ये ग्रन्थ भी सुदूर सिंहल में उक्त घटनाओं से एक सहस्राब्द के उपरान्त ही लिखे गये हैं । ६५ (४) चौथा आधार जैन साहित्य और अनुश्रुति है । इस आधार की सबसे विशेषता यह है कि यह चन्द्रगुप्त मौर्य एवं मन्त्रीश्वर चाणक्य दोनों ही विविक्षित व्यक्तियों के जीवनपर आदि से अन्ततक दोनों के ही जन्म से उनकी मृत्युतक अच्छा विशद प्रकाश डालता है, साथ ही इस आधार का प्रामाणिक सिलसिला प्रायः उक्त व्यक्तियों के समय से ही प्रारम्भ हो जाता है और शनैः शनैः विकास को प्राप्त होता हुआ मध्यकाल तक चला आता है । विपुल, विविध, विशद, व्यापी, प्राय: परस्पर एवं पूर्वापर अविरुद्ध, प्रामाणिक एवं प्राचीनतम होते हुए भी, खेद इसी बात का है कि इतिहासकारों के हाथ इसकी बहुधा उपेक्षा ही हुई है, और इसका जैसा चाहिये था वैसा उपयोग नहीं हो पाया । इस आधार को निम्नलिखित पाँच श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है (अ) दिगम्बर कथा साहित्य - शिवार्य की भगवती श्राराधना ( १ ली शताब्दी ई० पू० ), उसकी टीकाएँ (४ थी से १२ ० ), हरिपेा का तत्कथाकोष (१३१ ई०), प्रभाचन्द्र की आराधना कथा प्रचन्य (१०५० ई लगभग), श्रीचन्द्र का कपाकोष ( १२वीं १३ वीं श० ); नेमि का नकोप (१३० ई० लगभग) आराधनासार कथाstu, guarresent इत्यादि (ब) श्वेताम्बर श्रागम साहित्य - विशेषकर उत्तराय एवं आवश्यक सूत्रों पर रची गयीं नियुक्तियाँ एवं चूंयाँ, हरिभद्रीय आवश्यक वृत्ति देवेन्द्रगणिकृत सुबोध आदि । (स) ऐतिहासिक ग्रन्थ- हेमचंद्राचार्य कृत स्थविरावलि चरित्र अर्थात् परिशिष्णपर्व, रत्ननंदि आचार्यकृत भद्रबाहु चरित्र, देवचंदकृत राजावलिक आदि । (द) सुटकर ग्रन्थ - यथा प्राकृत मरणमाह आदि । (य) जैन शिलालेख दक्षिण भारतस्थ मूड़वद्री यादि स्थानों में उपलब्ध सम्राट् चन्द्रगुप्त सम्बंधी अनेक प्राचीन शिलालेख, सम्राट् प्रियदर्शी के शिलालेख, कलिङ्ग सम्राट् खारवेल के अभिलेख, सुदर्शन झील के लेख श्रादि । और इन सब जैनाधारों का मूलस्रोत दिगम्बर ग्राम्नाय का 'अङ्गवाद्य श्रुन' था जिसके कतिपय अवशेष, दिगम्बर, वेताम्बर संघभेद के पश्चात् श्वेताम्बर 'पयन्नासंग्रह के रूप में प्रसिद्ध हुए । उक्त अङ्गबाह्यश्रुत अथवा पयन्नों की विपय सामग्री संक्षिप्त गाथाबद्ध सूत्र रूप में गुरु परम्परा द्वारा मौखिक द्वार से चन्द्रगुप्त चाणक्य के स्वसमय से लगभग १०० ई० पू० तक अस्खलित, अविकृत रूप में ही चली आयी थी; तत्पश्चात् वह परम्परागत श्रुति भी अन्यों के साथ-साथ लिपिबद्ध भी होनी प्रारम्भ हो गयी और मौखिक द्वार से
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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