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________________ [भाग.५ चाणक्य ब्राह्मण नाश करेगा और वही मौर्य चन्द्रगुप्त को राज्य देगा ।' विशाखदत्त के प्रसिद्ध 'मुद्राराक्षस नाटक' में चन्द्रगुप्त मौर्य की राज्य प्राप्ति के उपरान्त नन्दों के भूतपूर्व मन्त्री राक्षस तथा चाणक्य के बीच राजनैतिक संघर्षों एवं कूट द्वन्दों का दिलचस्प चित्रण है। उक्त नाटक के टीकाकार ढुंढीराजने चाणक्य अपर नाम विष्णुगुप्त ब्राह्मण को दण्डनीति का पण्डित, सवविद्या पारगत एवं नीतिशास्त्र का प्राचार्य करके लिखा है; और चन्द्रगप्त को नन्द की मुग नामक शूद्रा दासी का पुत्र कथन किया है । 'कथा सरित्सागर' में चाणक्य द्वारा नन्द के श्राद्ध का निमन्त्रण स्वीकार करने और शकटार के पड्यन्त्र से सुबन्ध के होता बनाये जाने पर अपना अपमान गान क्रोधावेश में नन्द के नाश की प्रतिज्ञा करने का वर्णन है । अस्तु इन आधारों से चाणक्य के मगध राजनीति में पदार्पगा करने से पूर्व के इतिवृत्त के सम्बन्ध में, उसको पितृकुल, व्यक्तिगत जीवन तथा उसकी अन्तिम अवस्था के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं होता। साथ ही ये प्राचार चन्द्रगुप्त चाणक्य से लगभग एक हजार वर्ष से भी अधिक पीछे के हैं। चागाक्य का स्वरचित प्रख्यात 'अर्थशास्त्र' अपने शन्द्र मौलिक रूप में आज उपलब्ध नहीं है। किन्तु विष्णुगप्त नामक विद्वान् की टीका के रूप में जैसा कुछ भी वह मिलता है का मूलकनी अथवा उसके स्वामी सम्राट चन्द्रगुप्त के इतिहासपर कुछ भी प्रकाश नहीं डालना। यः गया वास्तव में निनान्न आसाम्प्रदायिक एवं अनात्मवैज्ञानिक दृष्टि से लिग्ना गया है, और प्रापने वर्तमान रूप में पर्याप्त त्रुटित एवं ने एकपूगो है। (३) तीसरा असार बौद्ध अनुश्रान है । मोग्गलन के बौद्ध इतिहास ग्रन्थ 'महावं में चाणक्य ब्राह्मण द्वारा को पावेश में धनानन्द का नाश करके मौर्यों के वंशज चन्द्रगुप्त को सकल जम्बूद्वीप का राजा बनाने का उल्लेख करते हा चापाक्य को तनशिला के एक ब्राह्मण का पुत्र, तीनों वेदों का ज्ञाता, शास्त्रों में पारंगत. मन्त्र विद्या में निपुण और नीति शास्त्र का प्राचार्य बनाया है । गहावंश के अतिरिक्त 'सत्थप्यकासिनी' (सिंहली संस्करण) जिसके कि आधार थेरवादियों की सीहलट्ठ कथा' तथा धम्माविकों की 'उत्तर विहारट्ट कथा' हैं, और 'महाबोधिसः महापरिनिर्वाणसुत्त' 'नन्दपेतवस्थ' आदि ग्रन्थों में भी चन्द्रगुप्त, चागाक्य, नन्दों, मौर्यों आदि के सम्बन्ध में कुछ सामान्य संक्षिप्त उल्लेख हैं। वंसत्थप्पकासिनी के अनुसार राजा धनानन्द बड़ा दानशील था, उसकी दानशाला में नित्यप्रति दान वितरण होता था और लगभग एक करोड़ मुद्रा प्रतिवर्ष इस प्रकार दान की जाती थीं। इस कार्य के लिये राजाने एक दाणग्ग (दान विभाग) स्थापित किया था जिसकी व्यवस्था एक संघ (समिति द्वारा होती थी और उसका अध्यक्ष शास्त्रार्थ में विजयी सर्वाधिक विद्वान् होता था जो कि 'संघब्राह्मण' कहलाता था। संयोगवश अपनी योग्यता के बल से चाणक्य को यह पद प्राप्त हुआ किन्तु उसकी असह्य कुरूपता के कारण राजा ने उसे बलपूर्वक दानशाला से निकलवा दिया। अतः नन्द, क्रोधी चाणक्य का कोप भाजन हुआ अ
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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