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________________ भास्कर [भाग १५ --- --------- --- - - ----- ज्ञान हो सकता है। मान्यवर डा. जगदीशचन्द्रजी का "वर्द्धमान महावीर" एवं उनकी थीसिस भी जो अभी प्रकाशित भी हो चुकी है, उपयोगी साधन है । दूसरी सावधानी साधनों के उपयोग करने में विवेक की आवश्यकता है। घटनाओं से बहुत पीछे के लिखे ग्रन्थों को पौराणिक-सा मानकर उनके मूल तत्त्व को अन्य प्राचीन साधनों से खोज निकालना आवश्यक होता है । ग्रन्थान्तरों में एक ही घटना कई प्रकार से लिखी मिलती है एवं ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं स्थानों के नामादि में अन्तर पाया जाता है वहाँ प्राचीन ग्रन्थ को ही अधिक महत्व देना आवश्यक हो जाता है। इसी प्रकार पद-पद पर साधनों के उपयोग करने में विवेक, समभाव ( निष्पक्षपात ), टिप्पणी में अन्य साधनों का निर्देश व स्पष्टीकरण आदि बातें विशेषरूप से ध्यान में रखनी चाहिये । तीसरी सावधानी प्रमाणों के उचित मूल्याङ्कन के सम्बन्ध में रखने की होती है। हम जैन या दि. या श्वे हैं इसलिये यदि जैन या दि०, श्वे० की प्रत्येक बानको बढ़ा चढ़ा कर लिखने या अनुचित महत्त्व देने लगेंगे तो वह लेंग्वन सर्वमान्य व प्रामाणिक नहीं हो सकेगा। बहुत-सी बार ऐसा अनुभव होता है कि कोई ग्रन्थ या कवि साधारण होता है पर हम उसकी बहुत प्रशंसा कर देते हैं और कहीं कहीं महत्वपूर्ण ग्रन्थ को निष्पक्षपात से नहीं पढ़ने के कारण उसको साधारण बतला देते हैं, यह उचित नहीं कहा जा सकता। अतः जहाँतक हो सके तटस्थता के साथ अध्ययन करने की ओर ध्यान रखना आवश्यक है । साम्प्रदायिक दृष्टि व बहावे में न लिवकर घटना. एक वस्तु को उचित महत्व देना ही उपयुक है। ... उपर्युक बात किसी व्यक्ति विशेष को लक्ष्य करकं नहीं लिम्बी गयी हैं पर प्रसंगवश साधारणतया ध्यान में रखने के लिये ही लिखी गयी हैं । आशा है पाठक इसे उचित अर्थ में ग्रहण करनेका ध्यान रखेंगे । इस प्रायङ्गिक भूमिका के बाद मूल विषय पर प्राता हूँ। जैसा कि मैं पूर्व कह चुका हूँ कि पं० गोविन्दरायजी के लेखका अाधार दि० साहित्य है पर उसक आधार ग्रन्थ कितने प्राचीन है ? लेख में निर्देश नहीं होने से प्राचीनता व प्रामाणिकता के विषय में कुछ कह नहीं सकता पर उसमें प्रकाशित कई बातें प्राचीन श्वे. साहित्य में भिन्न प्रकार से वर्णित देखने में पाई हैं उन्हीं की यहाँ सूचना कर देता हूँ। १ श्रापक लेख में वैशाली के राजा चटक की पहिली कन्या प्रियकारिणी का विवाह सिद्धार्थ से हुश्रा और उसी से महावीर का जन्म हुआ. बतलाया गया है, पर श्वे. आवश्यक चूर्णि आदि के अनुसार महावीर की माता चेटक की कन्या नहीं, पर बहिन थी। चेटक की पुत्री ज्येष्ठा का भ. महावीर के बड़े भाई नंदीवर्द्धन से विवाह होनेका उल्लेख उसी प्रन्थ में अवश्य आता है। २ टक की सात कन्याएँ थीं, यह तो ठीक है पर उनके क्रम, नाम, एवं पतियों के नाम, व धान के सम्बन्ध में श्रावश्यक चणि से गोविन्दरायजी के लिवित क्रमादि भिन्न हैं यथा
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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