SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण २] विविध विषय अस्त्र वंशः पुखाडसंशः समस्तपृथ्वीपतिमानिनीयः । त्यक्त्वा स्वकीयांसुरलोकलक्ष्मी देवाऽपि इच्छन्ति हि यत्र जन्म || तत्र प्रसिद्धो ऽजनि कामदेवः पत्नी च तस्याजनि नामदेवी । पुत्री तयोर्जीमन लक्ष्मणाख्यो बभूवतु राघवलक्ष्मणाविष ॥ रत्नखनेः शशिजलनिधेरात्मोद्भवः श्रीपतेः । १२६ तद्वज्जोमनती बभूव तनुजः श्री नेमिदेवाह्वयः ॥ यो बाल्ये ऽपि महानुभावचरितः सज्जैनमार्गेरतः । श्रीगुणभूषणक्रमनतः सम्यक्त्वचूलांकितः ॥ यत्यागेन जिगाय कर्णनृपति न्यायेन वाचस्पतिं । नैर्मायेन निशापति सत्स्थैर्यभावेन च ॥ गांभीर्येण सरिस्पति मलततिं सद्धर्म सद्भावनात् । श्रीमद्गुणभूषणोन्नति नतो नेमिश्वरं नन्दतु ॥ तत्सत्कार पुरस्कृतेन सललं तज्जैनता दर्शनात् । सन्तुष्टेन तदाज्र्जयादि सगुणैप्टेन पुष्टेन च ॥ तस्य प्रार्थनया सुसंस्कृतवचो बंधेन सन्निर्मिता । ग्रन्थोऽयं त्रिजगत्स्वरूपकथनः सम्पुण्यनिर्मार्पणः ॥ अर्थात् - पुरवाड वंश में समस्त राजाओं के द्वारा बंदनीय कामदेव नाम का राजा हुआ था। उनकी पत्नी का नाम नामदेवी था। इनके जोमन और लक्ष्मण नामक दो पुत्र हुए। जोमन का नेमिदेव नामक पुत्र हुआ । यह बचपन से ही जैन धर्म का माननेवाला सम्यक्त्व चूड़ामणि था । इसने अपने दान से कर्ण को, न्याय से वृहस्पति को, निर्मलता से चन्द्रमा को और स्थिरता और गंभीरता से समुद्र को जीत लिया था । इस धर्मात्मा, न्यायनिपुण राजा की प्रार्थना से संस्कृत भाषा के अनुष्टुप छन्दों में तीनों लोकों का वर्णन करने वाला यह ग्रंथ लिखा गया है । 9 कवि ने अपने वंश को नैगमसंज्ञक वंश बतलाया है । इन्द्रवामदेव प्रतिष्ठाचार्य, धर्मात्मा, जिनभक्तपरायण, नाना शास्त्रों का पारंगत और करणानुयोग के मर्मज्ञ विद्वान थे। इन्होंने प्रन्थारम्भ में चतुविंश तीर्थंकर नेमिचन्द्र, त्रैलोक्यकीर्ति धर्माकर मुनि और वीरसेनाचार्य आदि को स्मरण किया है। ग्रंथ रचने की प्रतिज्ञा करते हुए बताया है " त्रैलोक्यसारमालोक्य प्रन्थं त्रैलोक्यदीपकं” अर्थात् त्रिलोक सार नामक ग्रन्थ का सार लेकर इस प्रन्थ को रचा जा रहा है। इस ग्रन्थ में तीन
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy