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________________ किरण २] जन सिक उपयुक्त अयिलिप के ताँबे के सिक्कों में जैन प्रतीकों का उपयोग किया गया है। अश्व तृतीय तीर्थकर भगवान संभवनाथ का चिन्ह है, वृषभ प्रथम सीर्थकर भगवान आदिनाथ का चिन्ह है तथा हाथी द्वितीय तीर्थकर भगवान् अजितनाथ का चिन्ह है । इस राजा के चाँदी के सिकों पर एक भी जैन प्रतीक अंकित नहीं है, ताँबे के सिक्कों में तीन-चार प्रकार के सिक जैन प्रतीकों से युक्त हैं, इससे प्रतीत होता है कि यह राजा प्रारम्भ में जैन धर्मानुयायी नहीं था। उत्तर काल में किसी जैन श्रमण के प्रभाव से अहिसा धर्म का अनुयायी बन गया था। वास्तविक बात यह है कि शक राजाओं में कई राजा जैनधर्म का पालन करते थे। इस्वी सन से पूर्व पहली और दूसरी शती के उज्जयिनी के ताँ वे के सिक्कों पर एक और वृषभ और दूसरी बार सुमेरु पर्वत अंकित हैं। । इन मिक्कों में स्पष्टतः जैन प्रतीकों का प्रयोग किया गया है। वृषभ से आदिम तीर्थकर की भावना और सुमेरु पर्वत से विशाल विश्व को भावना अभिव्यक्त की गयी है। जैनागम में सुमेरु को इस पृथ्वी का केन्द्र बिन्दु माना है। प्राचीन हस्तलिखित कतिपय ग्रन्थों के अन्त में सुमेरु पर्वत ग्रन्थ समाप्ति के अनन्तर अंकित किया गया है । इस भावना का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार मूर्य, चन्द्र नित्य सुमेरु को प्रदक्षिणा किया करते हैं, उसी प्रकार यह जैनधर्म 'यावचन्द्रदिवाकरी' स्थित रहे। सुमेरु की रचना के सम्बन्ध में भी कई विधियाँ प्राप्त होती हैं। कुछ सिक्कों में तीन चिटे शुन्यों का पर्वनाकार देर. कुछ में छः चिपटे शन्यों का देर और कुछ में नी चिपटे शन्यों का पर्वताकार ढेर है। तीन शून्य रत्नत्रय के प्रतीक, छः शून्य पद द्रव्य के प्रतीक और नौ शून्य नवपदार्थ के प्रतीक हैं । इस प्रकार सुमेरु की विभिन्न आकृतियों में जन भावना को विभिन्न प्रकार से अभिव्यक्त किया गया है। वैदिक या बौद्धधन में सुमेरु को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं है, जितना जैनधर्म में । यही कारण है कि प्राचीन लिपिकारों ने ग्रन्थ समाग्नि में सुमेरु की प्राकृति अंकित की है। जनपद और गणराज्यों के प्राप्त सिक्कों में कुछ सिक्क उदुम्बर जाति के माने जाते हैं। स्मिथ साहब ने ताँबे और पीतल के बने हुए बहुत से छोटे-छोटे गोलाकार सिकों को उदुम्बर जाति के सिक माना है। उनका कहना है कि दो प्रकार के ताँबे के सिकों पर उदुम्बर जाति का नाम लिखा मिलता है। पहले प्रकार के सिकों पर एक I Coins of Ancient India P. 14; Indian Museum Coins Vol. 1, P. 154-155, No, 29, 30, 34; P. 155 No 35. 2 Coins of Ancient India P. 88
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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