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________________ जैन सिक्के [ ले. श्रीयुत पं० नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य, शास्त्री, साहित्यरत्न ] प्रत्येक देश और जाति के जीवन उत्थान के लिये इतिहास की परमावश्यकता है, क्योंकि अतीत की गौरवमयी दीपशिखा द्वारा पथप्रदर्शन का कार्य इतिहास से ही सम्पन्न होता है। जैन इतिहास का वर्षों से अनुसन्धान हो रहा है। शिलालेख, ताम्रपत्र, मूर्त्तिलेख, सिक े, जैनमन्थों की प्रशस्तियाँ, विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण एवं देशी-विदेशी विद्वानों द्वारा लिखित ऐतिहासिक ग्रन्थ जैन इतिहास निर्माण के मौलिक उपकरण हैं। सिक्कों के अतिरिक्त अन्य ऐतिहासिक सामग्री का उपयोग जैन एवं जैनेतर विद्वानों ने बराबर किया है। अब तक इतिहास निर्माण के प्रधान उपादान सिक्कों का अध्ययन जैन दृष्टिकोण से करने की दिशा प्रायः रिक्त है । यही कारण है कि भूगर्भ से प्राप्त सिक्कों को अभी भी जैन मान्यता देने में विद्वानों को किक हो रही है । aa प्रस्तुत का ध्येय विद्वानों का ध्यान इस दिशा की ओर आकृष्ट करना ही है। सन् १८८४ में कनिंघम साहब' ने अहिच्छत्र से प्राप्त ताँबे के सिक्को के एक ओर पुष्प सहित कमल और दूसरी ओर 'श्री महाराज हरि गुप्तस्य' अंकित देखकर यह तर्क उपस्थित किया था कि इस सिक्कों में अंकित धर्मभावना वैदिकधर्म और बौद्धधर्म से भिन्न जैनधर्म की धर्म भावना है। क्योंकि वैदिकधर्म भावना की अभिव्यक्ति के लिये गुमवंश के राजाओं ने यज्ञीय अश्वमूर्ति, विष्णुभक्त इस वंश के राजाओं ने अपनी धर्मभावना की अभिव्यक्ति के लिये लक्ष्मीमूर्ति, शिवभक्तों ने अपनी धर्मभावना की अभिव्यक्ति के लिये नान्दी या शिवलिंग और बौद्धधर्मानुयायियों ने अपनी धर्म भावना की अभिव्यक्ति के लिये चैत्य आकृति अंकित की है। पुष्प सहित कमल की श्राकृति का सम्बन्ध केवल जैनधर्म के प्रतीकों के साथ ही जोड़ा जा सकता है। जैनधर्म में मंगल द्रव्यों का बड़ा महत्व है, प्रत्येक कार्य में उसकी सफलता के लिये इन मंगलद्रव्यों का उपयोग किया जाता है। कलश का इन मंगल द्रव्यों में प्रमुख स्थान है। मथुरा से प्राप्त स्थापत्यावशेषों में मंगल कलश की आकृति मिलती है तथा अनेक हस्तलिखित प्रन्थों में भी मंगल कलश का चिन्ह उपलब्ध है । अतएव कुम्भ-कलश प्रतीक कित सिक े जैन हैं । १ जैन साहित्य नो इतिहास पृ० १३१, गुप्तवंशना जैनाचार्य शीर्षक
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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