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________________ किरण २] जैन मूर्तियों की प्राचीनता-ऐतिहासिक विवेचन वत्र , शंख, वृपभ, हस्ति, हंस, हरिण इत्यादि। जैनियों के लिए स्वस्तिक सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ, वन पन्द्रहवें तीर्थकर धर्मनाथ, शंख बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ, हाथी दूसरे तीर्थकर अजितनाथ, हंस पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ, हरिण सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ और वृषभ प्रथम तीर्थकर ऋपभनाथ के सूचक चिह्न हैं। इस प्रकार प्रकट होता है कि कंकाली टीले की कला पूर्णतः जैन विचारधारा से परिमावित है। ___ मथुरावशेषों के अतिरिक्त सातवीं, आठवीं, नौवीं और दसवीं शती की अनेक मूर्तियाँ भूगर्भ से निकली हैं, जिनसे जैन मूर्ति कला की मनोज्ञता, विशदता और महत्ता प्रकट होती है। लखनऊ म्यूजियम में ऐसी अनेक दसवीं शती की मूर्तियाँ हैं, जिनमें पार्श्वनाथ के चिन्ह सर्प का उपयोगामूर्ति के नीचे किया गया है। अबतक की उपलब्ध मूर्तियों में पाश्वनाथ, महावीर और आदिनाथ की मूर्तियों की अधिकता है। अम्बिका की मूर्ति का प्रचार भी जैन सम्प्रदाय में बहुत दिनों से चला आ रहा है। यह मथुरा, लखनऊ और दिल्ली आदि स्थानों के म्यूजियमों में है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक प्राचीन मूर्तियाँ अम्बिका की उपलब्ध हुई हैं। उपलब्ध जैन मूर्तियों को देखने से प्रतीत होता है कि जैन तक्षण कला का प्राचीन भारत में सर्वाधिक प्रचार था।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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