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________________ भास्कर [भाग १७ प्रसिद्ध व्यक्ति हैं अतः उनके जन्म संवतादि दो-चार बातों का ही उल्लेख कर जिनचन्द्रसूरि का ज्ञात वृत्तान्त दिया जा रहा। १ महाराजा अनूप सिंह- "जय जंगलधर बादशाहे विरुद प्राप्त महाराजा कर्ण सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। सं० १६६५ चैत्र सुदि ६ को श्रापका जन्म हुआ व सं० १७२.६ में ये गद्दी नशीन हुए। बादशाह की ओर से आप कई युद्धों में बड़ी वीरता पूर्वक लड़ थे अतः सं० १७३२ में बादशाह ने प्रसन्न होकर इन्हें 'महाराजा' का खिताब दिया था। उदयपुर के महाराना राजसिंह जिन्होंने राजसमुद्र नामक विशाल तालाब बनवाया था, के आप बहनोई थे। स्वरूप सिंह, मुजाण सिंह आदि आपके ५ पुत्र थे। सं० १७५५ के ज्येष्ठ सुदि ६ रविवार को प्राइणी में आपका देहान्त हुआ। आपका विद्यानुराग सर्वत्र प्रसिद्ध ही है । विशेप जानने के लिये स्व० प्रोमाजी का बीकानेर राजा का इतिहास ग्रन्थ देखना चाहिये । २ श्राचार्य जिनचन्द्र सूरि-कानेर निवासी गणधर चौपड़ा गोत्रीय सहसमल (यासहंसकरन की पनी गजलहे (मुपीयारडे) के आप पुत्र थे। सं० १६६५ का व०६ को सेरणा संभवतः ननिहाल) में आपका जन्म हुआ था । आपका जन्म नाम हेमराज था। १८ वर्ष की लघुवय में ही जिनरलमूरि के पाम सं. ५ जाट मदि ५ को जैसलमेर में आपने दीक्षा ग्रहण की। मं. १ में जिन ननर का आगर । में स्वर्गवास हो जाने पर राजनगर में उनके आदेशानुमार अापको गन्नायक पद श्रावण सुदि १८ को प्रदान किया गया। पदोत्सव नाटा गोत्रीय राजमल पुत्र जयमल तेजी, जैतमी व उनकी भार्या कन्नूर बाई ने बड़े समारोह पूर्वक किया। मंत्र प्रदान बड़गच्छीय सत्रदेवमूरि ने किया। आप बड़े त्यागी व बैरागी थे। गछ के यतियों में शिथिलाचार बढ़ते देख आपने सं० ./- आश्विन शुका मोमवार को बीकानेर में १५ बालों का एक व्यवस्था पत्र जारी किया जिनकी नकल हमारे संग्रह में है। सं० १:६५ के आपाइ मुदी ८ को खंभारा में आग्ने बीस स्थानक तप का आराधन भी प्रारंभ किया था। छाजहइशाह मोहनदास के संघ के साथ सं० १७१२ में शत्रंजय तीर्थ यात्रा की व मंडावर में मं० मोहनदाम कारित ऋपभादि चतुर्विंशति जिन बिम्बों की प्रतिष्टा की । दूतवास में नाहटा सा. जयमल के बनवाये हुए मन्दिर की. भी प्रतिष्ठा को। आपके दिये हुए कई पर्युषण के समाचार व प्रदेश पत्र हमारे संग्रह में है। एक कवित्त से अापने पंचनदी की साधना भी की विदित होता है। आपके रचित कई स्तवन (गोडीस्तवन मं० १७२२ छन्न जिनस्तवन स. १७४३) प्राप्त हैं। अनप सिंह जी के किये हुए पत्र व्यवहार से आपसे उनका अच्छा सम्बन्ध
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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