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________________ [भाग १ - - या कुछ खेल खेलकर जी बहलाना इसका लक्ष्य नहीं था; किन्तु अपना सर्वाङ्गीण विकास करना तथा सेवा के कार्यों में आगे रहना इस मण्डली का कर्तव्य था। दान देने की प्रवृत्ति बाबू देवकुमार में प्रारम्भ से ही थी। अनाथों, छात्रों और विषवानों को शक्ति अनुसार सदा दान दिया करते थे। नागरी प्रचारिणी सभा पारा को इन्होंने पुष्कल मासिक चन्दा दिया, इनकी देखादेखी और लोगों ने भी चन्दे की रकम बढ़ा दी। बाबू देवकुमार को पुस्तक पढ़ने से अधिक रुचि थी। यह एकान्त में बैठकर अंग्रेजी और संस्कृत की पुस्तकें पढ़ते रहते थे। पढ़ने के साथ बचपन से ही मनन भी करते थे। जैनधर्म और जैनसंस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन की लगन इनमें भारम्भ से ही थी। इनका भाषण बहुत ही मधुर और ओजस्वी होता था। श्रोता मन्त्रमुग्ध की तरह इनका भाषण सुनते रहते थे। नौकरों पर हुक्म चलाने की अपेक्षा यह अपने हाथ से काम करना ज्यादा पसन्द करते थे। इनको सूझ विलक्षण थी। किसी भी बात को खूब ठोक-पीट कर ही स्वीकार करते थे। अन्तिम समय बाबू देवकुमार ने एक दान-ट्रष्ट किया है। इससे इनके द्वारा स्थापित श्री जैन-सिद्धान्त-भवन पारा, श्री जैन कन्या पाठशाला आरा, धर्मार्थ धर्मकुमार औषधालय एवं कई जैन मन्दिर चल रहे हैं। बाबू देवकमार के साथ उनकी मृत्यु के समय धार्मिक गुरुओं के अतिरिक्त बाबू करोडीचन्द भी थे। इन्होंने सांसारिक माया-मोह को छोड़ कर बड़ी शान्ति और धैर्य के साथ प्राणों का त्याग किया था। इनके द्वारा स्थापित जैन-सिद्धान्त भवन श्रारा केवल जैनों के लिये ही गौरव की वस्तु नहीं है, किन्तु यह समस्त आर्य संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने में सहायक है। विहार तो इस संस्था से गौरवान्वित है ही, पर समप्र भारत में ऐसी संस्थाएँ थोड़ी हैं। इस संस्था का मुखपत्र जैन-सिद्धान्त-भास्कर ऐतिहासिक और पुरातत्त्व विषयक महत्वपूर्ण पत्र है। इसमें उच्चकोटि की साहित्यिक सामग्री रहती है। जैन इतिहास अभी भी अन्धकार में है। इस पत्र ने जैन इतिहास के अनेक महत्व पूर्ण निष्कर्षों को जनता के सामने रखा है। भारतीय संस्कृति की महत्ता और गौरव को प्रकट करने में जैनसिद्धान्त-भास्कर का महत्वपूर्ण स्थान है। ___ बाबू धर्मकुमार को असामयिक मृत्यु के उपरान्त इन्होंने उनकी धर्मपत्नी चन्दाबाईजी को सब प्रकार से शिक्षा-दीक्षा देकर योग्य विदुषी बनाया था। इन्हीके विचारों के फलस्वरूप श्री जैन-बाला-विश्राम जैसी गौरवपूर्ण महिला-संस्था आज समाज को मधुर फल चला रही है।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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