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________________ ६२ भास्कर [भाग १७ भिन्नोऽहमीशादिति धीरविद्या बद्धम्तयाऽमेदधिया विमुक्तः । एवं विमोक्षस्य सुदुर्लभस्य देहस्य पातान्न सभाप्ति संभवः ॥८॥ एवं श्रुत्वा शिष्ययुक्तः स जैनो भाषानेषाद्य विमुक्तो गुरुणाम् । नित्यं धान्याकर्षणे संप्युन: पद्याभ्याथै रेष जातो बणिग्वै ॥२॥ इस प्रकरण में कोई मौलिक सैद्धान्तिक चर्च का प्राभास नहीं मिलता, बल्कि जैन साधुओं के स्नानादि बाह्य क्रियायों पर आक्षेप किये हैं; जो निस्सार हैं। गङ्गायमुना में प्रतिदिन स्नान करने से किसी की मुक्ति कैसे संभव है ? किन्तु उपरोक्क अंश में इसी कारण जैनों को पद-पद पर कोसा गया है ! यह भी लिखा है कि इस समय जैनी रुपये कमाने में मस्त हो जाने के कारण निरे बनिये हो गए हैं। दूसरा स्थल बाह्निका प्रदेश में प्रार्हत-समागम-प्रसंग का निम्न प्रकार उल्लेख है :"प्रतिपद्य तु बाहलिकामहर्षों विनयिभ्यः प्रविवृण्वति स्वभाष्यम् । शवदन्नसहिष्णवः प्रत्रीणाः समये केचिदयाऽऽहनाभिधाने ॥१४२॥ ननु जीवमजीवमःस्रवं च शिसवत्संवरनिर्जरौ च बन्धः । अपि मोक्ष उपैषि सप्तसंख्यान्न पदार्थान्कथमेव सप्तमया ॥११३।।इत्यादि टीकाकार ने बाहलीक प्रदेश के उन आर्हत (जैनों ) को 'विवसनं समये प्रवीणः' लिखा है, जिससे उनका दिगम्बर जैन होना सिद्ध है। (सत्याहतसंज्ञके विवसनसमये प्रवीणाः ) इस प्रकरण में टीकाकार ने जैनों के सात तत्व, नौ पदार्थ और सप्तभङ्गी नयों का उल्लेख किया है और उनका निर्सन अपने ढंग से करने के लिए असफल प्रयास किया है। सप्तभंगि-नय-ज्ञान को समझने में वह नितान्त असमर्थ रहा है। जैन विद्वानों ने इनका समुचित उत्तर लिखा है। अतः यहां कुछ लिखना व्यर्थ है। इन दो स्थलों के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में जैनों सम्बन्धी और कोई उल्लेख नहीं है। कोसल के जैन राजा सुधन्वा को शङ्कर ने अपने मत में दीक्षित किया हो, ऐसा उल्लेख भी नहीं है ! उज्जैन और बाल्हीक प्रदेशों में जैनों का प्राबल्य था, यह इससे स्पष्ट है । २ गुणमाला-चउपई। जैन सिद्धान्त भवन, पारा के हस्तलिखित ग्रन्थ १५८ संख्यक को अवलोकन करने का सुअवसर हमें भवन के अध्यक्ष मित्रवर पं० नेमिनन्द्र शास्त्री के सौजन्य से प्राप्त हुआ। इस ग्रंथ का नाम 'गुणमाला-चउपई' है और इसे कवि खेमचन्द्र जी ने रचा था। यह बात ग्रंथ के अन्त में लिखे गए निम्नाक्ति पुष्पिका वाक्य से स्पष्ट है:
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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