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किरण १]
मुनिवंशाभ्युदय - ऐतिहासिक काव्य
दिया कि हाँ, हमारा संघ आ गया । हम अपने-अपने संघ सहित उपस्थित हो गये । इस उत्तर को सुनकर अर्हवली आचार्य ने विचार किया कि अब इस पचम काल में मुनियों का संघ एक नहीं रह सकेगा, श्रतः पूर्व दिशा में वर्षायोग करनेवाले मुनियों के संघ का नाम प्राची संघ या सेनवृक्ष के नीचे ध्यान करने के कारण सेनसंघ रखा । दक्षिण दिशा में वर्षायोग धारण करनेवाले मुनियों के संघ का नाम दक्षिणाचार्य संघ या नन्दिवृक्ष के नीचे ध्यान करने के कारण नन्दिसंघ रखा । उत्तर दिशा में वर्षायोग करनेवालों मुनियों के संघ का नाम उदीची-मंत्र अथवा शिव नाम की गुफा में वर्षा योग धारण करने के कारण शिव संघ रखा इन प्रकार चारों संघों की स्थापना की गयी ।
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चौथो सन्धि के प्रारम्भ में मंगलाचरण के उपरान्त वली आचार्य और उनके शिष्यों को सन्तोषवृत्ति का वर्णन है । ३ रे पत्र में बताया गया है कि एक दिन आचार्य ने अपने अभिनव संघ को पृथक-पृथक दिशा और देशों में बिहार करने का आदेश दिया। गुरु के आदेश के अनुसार नारों संपति आचार्यों ने गुरु चरणों में नमोsस्तु कर प्रस्थान किया। ५-६ वें पद्य में बताया गया है कि नन्दिसंघ के आचार्य तीन हजार मुनियों के साथ विहार करते हुए श्रवणबेलगोल स्थान में आये। ये इस नगर में चिकगर पहाड़ पर अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ के चरणों के समीप नमस्कार कर बैठ गये । समस्त मुनियों का संघ यहीं आत्मचिंतन करने में लीन हो गया। इसी बीच सम्राट चन्द्रगुप्त अनेक वाथों के साथ अन्तरीक्ष भगवान पार्श्वनाथके दर्शन के लिये आये। जिनेन्द्र भगवान के दर्शन कर मुनिसंघ को नमस्कार किया तथा अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिये आचार्य श्री से प्रश्न किया कि महाराज यह मूर्ति अधर में क्यों विराजमान है ! भूमि का स्पर्श क्यों नहीं करती है ? इसकी महिमा क्या है ? कृपाकर समस्त बातें बतलाने का कट करें ।
श्राचार्य - मुनिसुव्रतनाथ तीर्थकर के तीर्थकाल में महाप्रतापी महाराज रामचन्द्र हुए। सीताहरण के अनन्तर महाराज रामचन्द्र ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ लंका पर आक्रमण किया। राम रावण को परास्तकर सीता के साथ अयोध्या को लौटे । लंका में महाराज राम को 'गोम्मट विम्ब' और महारा सीता को 'पार्श्वनाथ त्रिम्ब' बहुत ही मनोज्ञ और रुचिकर प्रतीत हुए अतः उन दोनों को साथ लेकर वे चले। रास्ते में बेलगोल स्थान को सुन्दर और भव्य देखकर वहीं कुछ दिन के लिये ठहर गये। महाराज रामचन्द्र ने गोम्मट बिम्ब को विन्ध्यगिरि पर और महारानी सीता देवी ने 'पार्श्वनाथ fror' को fruit पहाड़ पर स्थापित कर पूजा की। कुछ दिन रहने के उपरान्त जब