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________________ ४४ [भाग १७ बेल्गोल में उन्हें रहने को बाध्य किया। सुव्यवस्था के लिये इस स्थान की सीमा निर्धारित कर दी तथा उक्त प्राचार्य से निर्भय होकर रहने के लिये अनुरोध कया । इन चारुकीर्ति के पश्चात इस गद्दी पर विमलाचार्य का पट्टाभिषेक हुआ। इसके अनन्तर इस सन्धि में चामराय बडेय के पश्चात चिक्कराज देव के जन्म होने तक, बीच के सभी राजाओं का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यह परिचय ऐतिहासिक है, पौराणिक नहीं। चिक्कदेव राजा की 'श्रृंगार कर्णाटक चक्रवर्ती' उपाधि तथा विरुदावली का निरूपण लगभग २० पद्यों में किया गया है। इस वर्णन में कविने अपनी कवि प्रतिभा का परिचय भी दिया है, साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों की विवेचना भी की है।। इस सन्धि में आगे बताया गया है कि चारुकीर्ति योगीन्द्र नाम प्राचार्य का क्यों पड़ा तथा श्रवणबेलगोल में उनके साथ विरोध उत्पन्न होने का कारण क्या था ? चिक्कदेव राज ने चारुकीनि प्राचार्य के श्रवणबेलगोलस्थ विरोध का शमन किस बुद्धिमना से किया तथा उन्हें सर्वदा के लिये श्रवणबेलगोल में किस प्रकार स्थिर कर दिया। आगे इस सन्धि में श्री महावीरस्वामी के अनन्तर चामकीनि पंडिताचार्य तक समस्त आचार्यों के वंशों के सम्बन्ध में प्रकाश डालने की प्रतिज्ञा की है। तृतीय सन्धि के प्रारम्भ में भग्त क्षेत्र नथा काल भेद का वर्ग विस्तार पूर्वक लगभग ५० पद्यों में किया गया है। २१ वे तीर्थकर भगवान महावार के मनिष परिचय के अनन्तर तीन केवली, पाँच अतकेवली. ग्यारह दश पूर्वधारी, चार आचारसंगधारी के नामों का उल्लेख संक्षिप्त परिचय के माथ किया है। इस सन्धि में संघ स्थापना के इतिहास पर भी प्रकाश डाला गया है। श्रीदन, शिवदान योगी, अरुदत्त मुनि और अहंवल्याचार्य के सम्बन्ध में २० पद्यों में अनेक ज्ञानव्य बातें बतायी गयी हैं। संघ भेद के कारण का उल्लेख करते हुए बनाया गया है कि एक समय अहंदुयल्याचार्य विहार करते हुए उज्जैनी में पहुँचे, इनके साथ सोलह हजार मुनियों का मंघ था। जब वर्षायोग का समय आया तो आचार्य असमञ्जस में पड़ गये। सोचने लगे कि इतने मुनियों को एक साथ लेकर रहना संभव नहीं हो सकेगा, अतः सकुशल वायोग को समाप्ति तथा विभिन्न स्थानों में धर्म प्रचार हो सके इसनिये उन्होंने तीन-तीन हजार मुनियों का संघ बनाकर तथा एक-एक श्राचार्य को संघ का अधिपति बनाकर चारों दिशाओं की ओर भेज दिया। प्राचार्य ने स्वयं अपने साथ चार हजार मुनियों को लेकर उज्जैनी में वर्षायोग धारण किया। चारों दिशाओं में भेजे गये मुनि वर्षायोग बिताकर प्राचार्य श्री के समक्ष उपस्थित हुए। आनार्य महाराज ने पूछा कि क्या सभी मुनि आगये ? संघाधिपतियों ने उत्तर
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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