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________________ भास्कर भाग १ बीच की पहाड़ियाँ जहाँ जैनियों के मन्दिर बने हैं, जमीन्दार की हैं। उसके लिये ऊंची से ऊंची रकम देकर कोर्ट ऑफ वॉर्डम से खरीदने की अर्जी जैन लोग दें, अन्यथा वहाँ भी बँगले बनेंगे। . इस हुक्म से समाज में तूफान उठ खड़ा हुश्रा। तभी यहाँ महासभा का अधिवेशन हुमा। मुझे एक सज्जन ने, जो उस अधिवेशन में मौजूद थे बतलाया कि लोगों में इतना जोश था कि प्रथम दिन ही अधिवेशन की कार्रवाई करना कठिन हो गया। सभापति षा० देवकुमार जी तो देवकुमार ही थे। आप बड़े ही सरल, सीधे, सहिष्णु, विनयी और बोलचाल तथा वर्षाव में अत्यन्त नम्र थे। किन्तु आपके साथ जो आपका कोई कारकुन था, वह बहुत ही चतुर था, उसने तुरन्त ही खड़े होकर कहा कि सरकार अत्याचार करने पर तुली है। और हम जीते जी शिखर जी पर कोई बंगला नहीं बनने देंगे। सबसे प्रथम शहीद होने के लिये मैं अपना नाम लिखाता हूँ। अब और भाई नाम बोलते जायें। ___ इतना सुनते ही लोगों की बोलती बन्द हो गयी और सोडावाटरी उफोन शान्त हो गया। फिर सभा का काम शांति के साथ हुआ। ___ महासभा के उक्त अधिवेशन में दो काम उल्लेखनीय हुए। एक तो पं० गोपालदास जी के अत्याग्रह से महासभा का उद्देश्य धार्मिक विद्या और धर्म से अविरुद्ध लौकिक विद्या की उन्नति करना हो गया। दूसरा कार्य महाविद्यालय का स्थान सहारनपुर से बदलकर काशी में कर दिया गया। काशी में श्री स्याद्वाद पाठशाला की स्थापना पहले ही हो चुकी थी और बा० देवकुमार जी के पितामह पं० प्रभुदास जी के वर्तमान भवन में ही स्थापित थी। इसके प्रथम मन्त्री स्व. बा. देवकुमार जी ही थे। महासभा के महाविद्यालय को उसमें मिला देने से ही उसका नाम स्याद्वाद पाठशाला से स्याद्वाद महाविद्यालय रखा गया था। किन्तु बाद में महासभा का महाविद्यालय पुनः अलग हो गया। अस्तु, ___ स्व. बा. देवकुमार जी को प्राचीन शास्त्रों की सुरक्षा और धार्मिक शिक्षा से बहुत ही प्रेम था। आप अपने दोनों पुत्रों को भी पहले धार्मिक शिक्षा दिलाकर पीछे लौकिक शिक्षा दिलाना चाहते थे। इसके लिये आपने पं० लालाराम जी को बम्बई से बुलाकर अपने यहाँ रक्खा था। अपनी भ्रातृ-पत्नी श्री० पं०७० चन्दाबाई जी को शिक्षा दिलाकर इस योग्य बनाने का श्रेय भी पापको ही है। विद्याप्रेम का इससे अधिक ज्वलन्त उदाहरण और क्या हो सकता है? जिनवाणी की रक्षा के लिये भी श्राप सदा प्रयत्नशील रहते थे। एक बार माप दक्षिण प्रान्त की यात्रा के लिये बम्बई गये। भापकी इच्छा थी कि दानवीर सेठ
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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