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________________ भास्कर [भाग १७ ४ जिनदत्तसूरि गीत-१७ पद्यों में गुरुदेव को सन्दर शब्दों में स्तवना की गयी है। हमारे यु० जिनदत्तमूरि ग्रंथ के परिशिष्ट में यह प्रकाशित है । ५ फलौधी पार्श्वस्तवन गा० ५ गद्य ग्रन्थ--- १ चौमासी व्याख्यान-इसकी प्रति स्थानीय श्रीजयचन्द जी यति के भण्डार में भी है पर उसमें रचनाकाल नहीं दिया गया है जब कि स्व. देसाई के जैन गु० क० भा० ३ पृ० १६०६ में सं० १६६४ लिखा है । मेरे ख्याल में उक्त समय प्रति के लेखन का संभव है पर निश्चित तो प्रति के अवलोकन से ही कहा जा सकता है । श्रीअजितशान्तिस्तवनम् विश्वप्रभुसेनमहीसनाथं सुवंशजं पंकजडत्त्वहारं । श्रीभास्करं श्री अजितं च भूयः आनंदकंदं त्वं चिरे णतायं ।।१।। जनाशुधीशं करमंशुकांतिः वंदे महाशान्तिमहं सदा यं सुरासुरक्ष्मापनराह्यधीशः संसेवितं श्रीसुमनः प्रभुच ॥२॥युग्मम् वर्ण्यस्वर्णसवर्णरुक समगुणक्षेत्रं रसारम्यको । जन्मानंतसमुद्रसज्जतरणिः सारंगरंगाकरः ॥ दुःकर्मालिरिपुप्रवारकतमः संहारताकारिकस्त्राणं मां करुणास्पदं ह्यजितराट् सूरोवतात्तामसात् ।।३।। मिथ्यात्वद्रुमभंगवारणनिभं रंगेणभव्यप्रदं । सन्नित्यं सुखभंगिभद्रविनिकाद्यं संनुतं संततं ।।युग्मम मोहाद्रिस्वरूकं शिवं खरनिभच्छेदक्षम वनसात् दंताभोगविधि वरं नमः नमः श्रीबन्धुरं चाजितम् ॥४॥ नैश्वप्राधान्य सेद्धः सुगुणनिकरखानिर्जिनोनंदि विद्या सच्छीशान्तिः सलीलः सदुपशमधनीनालयः पात्वपायात् सध्यानो हर्षकारः समगुणवसतिर्वर्जिता ज्ञानभारोनुन्न क्रोधारिवर्गः प्रदितभवनिवासाकरः श्रीजिनेशः ।।५।। अच्छाच्छात्मा चिराच प्रथितमहिसमाख्योत्करः सादरोघोदारं स्कन्नोदरीशोतिदर करिहरीशोदशाश्वप्रचार मंदारद्रुप्रमल्लिस्मितसुमेकलिकाजातिमुख्यैपयोजैः श्रीदेवाः पूजयंति प्रजितगदमदसुक्रमः सोस्तु लक्ष्म्यैः ॥६॥
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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