________________
किरण १]
कविवर सूरचंद्र और उनका साहित्य
यादि जैसे विशिष्ट ग्रन्थकारों के बीमों ग्रन्थ इन २५० वर्षों में लुप्त हो गये व त्रुटित रूप से मिलते हैं।। कतिपय ग्रन्थों की प्रतियां तो अब भी विद्यमान होने की संभावना है पर जितने भी ज्ञानभंडार बच पाये हैं उनको भी जैसी चाहिये सार-संभाल नहीं है। कई संग्रहालयों के तो सूचीपत्र ही नहीं बने, कई व्यक्तिगत हैं जिन्हें देखने का भी किसीने कष्ट नहीं उठाया या अधिकारियों ने योग्य व्यक्तियों को देखने का मौका ही नहीं दिया। इसी प्रकार बहुत से स्थानों के भंडार अभी अज्ञात व्यवस्था में पड़े हैं कई प्रसिद्ध भंडागं में भी कई बंडल त्रुटिन व फुटकर पत्रादि के बिना सूची के यों ही पड़े हैं जिनके अवलोकन से बहत सी नवीन सामग्री व अल्प ग्रन्थ भी प्रास होते हैं। जैन इतिहास की अनेक ज्ञ:तव्य व तें उन ग्वंडदर व कुटले में यों ही पड़ी रहती है। इधर २० वर्ष के अन्वेषण से इन पंक्तियों के लेखक का यही निजी अनुभव है। बीकानेर में ४०-५० हजार हस्तलिखित प्रतियों का महान् संग्रह होने पर भी २० वर्ष पूर्व जब हमने अन्वेषण का कार्य श्रारंभ किया था बड़ी ही अव्यवस्था थी। हमागे जानकारी में भी हजारों प्रतियां यहाँ से बाहर चली गई, हजारों कूड़े करकट में पड़ी हुई पाई गई, कई संग्रहालयों के यूपी-पत्र नहीं थे, कइयों के थे तो नाममात्र के। उस परिस्थिति से इन पंक्तियों के लेखक को बड़ा असन्तोष हुआ और कई वों तक धोर परिश्रम करके ३० हजार प्रतियों की विवरणात्मक सूची बनाई । 'कड़े में पड़े हुए व कोड़ियों के मूल्य विकने वाले ग्रन्थों को मंग्रह किया गया। फलतः १५ हजार प्रतियों का संग्रह हो गया जिनमें सहस्राधिक ऐसे ग्रन्थों की उपलब्धि हुई है, जिनके अस्तित्व का अन्यत्र कहीं भी पता नहीं च नता। विभिन्न ग्रन्यों व लेखों में जिनका परिचय समय २ र करवाया जा रहा है वे सैकड़ों ग्रन्थों का विवरण (आदिअंत सहित परिचय) लिखा हुआ तैपार है जिनके प्रकाशन की व्यवस्था चालू है। हमारे गोरवपूर्ण साहित्य के अन्वेषण के प्रति विद्वानों का ध्यान श्राकर्षित करने के लिये प्रासंगिक रूप में थोड़ा सा निवेदन कर देने के अनन्तर अपने मून विषय पर आता हूँ।
सत्रहवीं शादी के सुप्रसिद्ध श्रावक कवि ऋषभदास ने अपने पूर्ववर्ती व समकालीन कषियों का उल्लेख करते हुए "सुपाधु हंम समयो मरचंद" शब्दों द्वारा सूरचंद नामक महाकवि का स्मरण किया है । स्व. मोहनल ल द नीचंद देसाई ने सूरचंद शब्द के टिपग में लिखा था कि
"सूरचंद -श्रा नाम ना कविनी कोई कृति प्राप्त थती नथी सूरहंम नामनो कवि छ जुया एज० (जै० गु० क.) पृ० १३२, सूचंद एटले देवचंद एम होय तो देवचंद्र ऋषभदास ना समकालीन हता जुश्रो ए जवृ पृ० ५७६-८५"
देशाई जी का उपयुक्त निर्देश संतोषप्रद नहीं लगने व खरतर गच्छीय मूर वंद के उसी समय १ जैम स्तोल संदोह भा० १ प्रस्तावना पृ०६८ १ भान काव्यमहोदधि भा०८ पृ. ३ (कवि परिचय में)