SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ after सूरवंद्र और उनका साहित्य [ ले० - श्रीयुत बा० अगरचन्द नाहटा, बीकानेर ] जैन साहित्याकाश में समय २ पर अनेक तेजस्वी नक्षत्रों का उदय हुआ, जिनके ग्राविर्भाव से अंधेरी रात्रि में प्रकाश की किरणें फैली । प्राचीन इतिहास के तथाविध अन्वेषण के अभाव में हम उनकी गौरव गाथा भूल से बैठे हैं । भ० महावीर के शासन में गत ढाई हजार वर्षों में हजारों प्रतिनासन्न विद्वान हो गये हैं, जिनमें से कइयों ने तो अपनी वाणी द्वारा तत्कालीन जनता के ही नैतिक स्टर को ऊँचा उठाया पर बहुत से ऐसे भी विद्वान हुए जो हमारे लिये विशिष्ट साहित्य सम्पत्ति विरासत के रूप में छोड़ गये हैं जिसमे आनेवाली जनता को भी प्रकाश व प्रेरणा मिलती रहे । खेद के साथ कहना पड़ता है कि उनके उत्तराधिकारियों ने जैसी चाहिये, उस साहित्य की सुरक्षा नहीं की। कुछ तो राजनैतिक व विषम परिस्थितिवश कुछ हमारी उपेक्षावश बहुत से विशिष्ट कवि व उनकी रचनाएँ विस्मृति के गर्भ में विलीन हो चुकी हैं। आश्चर्य है कि इतने पर भी हमारी अांखें नहीं खुली । मध्यकालीन मुसलमानी सम्राज्य के समय में जबकि देश की बहुत अधिक क्षति उठानी पड़ी, जैनों ने बड़ी दूरदर्शिता से थाने शिरस्थापत्य व साहित्य की अधिकाधिक रक्षा ही नहीं की पर उन विषम वतावरण में भी उसकी बुद्धि की। पर इधर से डेढ़ सौ वर्षों में ( गत कई शताब्दियों में जो हानि उठानी पड़ी उससे भी अधिक) अज्ञानता उदासीनता व सार्थवश बहु क्षति उठानी पड़ी। सैकड़ों अनमोल ग्रन्थ कूड़े करकट में डाल दिये गये, उतने ही वां और सर्दी से चिपक कर नष्ट हो गये, दीमक आदि जन्तु ग्रां ने भी उनके विनाश में कनर नहीं रखी, इवर उन रत्नों के महत्व को न जानने के कारण ति प पैसों में उन्हें हलवाई, बसारी व फेरीवालों के हाथों में बेंड ले गये, जिन्होंने उन्हें फाड़ फाड़ कर पुड़ियाँ बाधी । कितने ही पत्र को रही समझ कुठे के काम में लेकर पटड़ी पूठे डाव आदि चीजों के बनाने में काम ले लिये गये। क्षेत्र में विवर्मा व लुटेरों द्वारा इतने नहीं लूटे गये, जितने अपनी अज्ञानता, उदासीनता व तुच्छ स्वार्थ के कारण बरबाद हुए । इस प्रकार हजारों अनमोल रत्नों से हम हाथ धो बैठे। अध्ययनशील व अन्वेषण प्रेमी विद्वानों से यह लिग नहीं है कि सैकड़ों ग्रन्थों के रचे जाने का पता व उद्धरण हम परवर्ती ग्रन्थों में पाते हैं व पुरानी सुनियों में नाम मिलते हैं उनका वर्तमान भंडारों में कहीं पता ही नहीं चलता। कई ग्रन्थों की प्रतियां अधूरी व त्रुटिन रूप में मिल रही हैं, पूरी नहीं मिलती। बहुत बार तो सखेद आश्चर्य होता है कि जिन ग्रन्थों की प्रतियाँ आज से पच्चीस, पचास या सौ दो सौ वर्ष पूर्व विद्यमान थी. अब नहीं मिलती। श्रीमद् यशोविजय उपाध्या
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy