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________________ किरण १] जैन ग्रन्थों में क्षेत्रमिति - १ चतुर्भुज के सूक्ष्म मान के लिए दो नियम उपलब्ध हैं । (१) चतु० क्षेत्र - Vis-a) (s - b) (s - c) (8 - d) (२) चतु० क्षेत्र (b + d) h 2 पहला नियम केवल वृत्तगत चतुर्भुज के लिये सही है पर ऐसी बात ग्रन्थ में नहीं लिखी मालूम पड़ती । और दूमरा नियम Trapezium के लिए या जब b=d है तब ही ठीक | यह नियम विषम चतुर्भुज में नहीं लागू हो सकता । चतुर्भुज के कणों के लिए निम्नलिखित नियम मिलता है । कर्ण - 8 ac + bd) (ab + cd) ad + be ac + bd) (ab + cd) ab + cd १६ जो केवल वृत्तगत चतुर्भुज के लिये ही सही है । पर समूची भारतीय गणित-परम्परा में महावीराचार्य ही एकमात्र आचार्य हैं, जिन्होंने Re entrant चतुर्भुजों की कल्पना की है । वृत्तगत चतुर्भुज का भी उल्लेख महावीराचार्य ने विस्तार से किया है। ऐसे वृत्त का व्यास = क्षेत्रफल + क्षेत्रपरिमिति * Isoceslles Trapezium के बारे में त्रिलोकसार (गाथा ११४ ) में तीन नियम मिलते हैं:(1) क्षेत्रफल = 1⁄2h (a + b) जहाँ a, b, समानान्तर भुजाओं के माप हैं वहाँ इन्हें आधार और मुख को भुजाएँ माना गया है । यह नियम तो किसी तरह के Trapezium के लिए सही है पर वहाँ ऐसा उल्लेख नहीं है । (२) b की, हानि या की वृद्धि b-a a= के हिसाब से होती है । h (३) किसी ऊँचाई h' पर समानान्तर भुजा के माप को निकालने की रीति । b-b-sh महावीराचार्य के गणित संग्रह में किसी त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त श्रादि को समानुपाती क्षेत्र में बाँटने के नियम भी वर्तमान हैं ।
SR No.010080
Book TitleBabu Devkumar Smruti Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1951
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size47 MB
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