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________________ बसुदेव हिन्दी की राम कथा ग्रीव जो रावण के नाम से प्रसिद्ध है, विशति ग्रीव राजा के ४ पलियां थी देववरांनी, बका, कैकेयी और पुष्पकूटा। देववने के चार पुत्र थे सोम, वरुण, यम और वैधमण, कैकेयी के रावण, कुम्भकरण और विभीषण ( ये तीन पुत्र) तथा चिटा और सूर्पणखा ये २ पुत्रियां थीं, वक्रा के महोदर, महार्थ, महापाश और खर (ये ४ पुत्र) तथा भाशालिका पुत्री थी, पुष्पकूटा के त्रिसार, द्विसार और विद्युद्धि मे पुत्र धौर कंभुनास्ता कन्या थी । रावण सोम-यम आदि के साथ वैर करके सपरिवार निकल गया और लंका द्वीप में जा बसा । वहां उसने प्रशीत विद्या की साधना की और परिणामस्वरूप विद्याद्यर सामंत उसे नमन करने लगे। इस प्रकार लंका पुरी ही उसका वासस्थान हो गया वहां रहते हुए विद्याधर लोग उसकी सेवा करने लगे । मंदोदरी का रावण से विशह एक बार मन नामक विद्याधर अपनी मंदोदरी नामक पुत्री के साथ सेवार्थ रावण के पास पहुँच गया। वह कन्या लक्षण जानने वालों को बतलाई गई। उन्होंने कहा इसका प्रथम गर्भ कुल के क्षय का कारण बनेगा । परन्तु अत्यन्त रूपवान होने से रावण ने उसका त्याग नहीं किया। 'पहले पैदा हुवे बालक का त्याग कर दूंगा' यह विचार करके उसके साथ विवाह कर लिया । धीरे धीरे वह मंदोदरी ( रावण की रानियों) में प्रधान (पट रानी) हो गई। राम परिवार इधर, अयोध्या नगरी में दशरथ राजा था। उसके ३ पत्नियां थी कौशल्या, कैकेयी भोर सुमित्रा | कौशल्या के राम, सुमित्रा के लक्ष्मण श्रीर कैकेयी के भरत और शत्रुघ्न नाम के पुत्र उत्पन्न हुए देव जैसे सुन्दर मे धीरे धीरे बढ़े हुए। १५५ मंदोदरी की कुक्षि से सीना की उत्पत्ति व जनक द्वारा प्रण रावण की पटरानी मंदोदरी के पुत्री हुई। उस पुत्री को रत्नों से भरी पेटी में रखा गया । मंदोदरी ने मंत्री से कहा, 'जाओ, इसे छोड़ भाभो ।" उसने मिथिला में जनक राजा की उद्यान भूमि जब ठीक की जा रही थी तब तिरस्कारिणी विद्या से संत्रस्त्र करके कन्या को हल के अग्र भाग पर डाल दिया। बाद में 'यह कन्या हल द्वारा जमीन से निकाली गई है' इस प्रकार का राजा से निवेदन किया गया । वह कन्या धारिणी देवी को प्रपित की गई और चंद्रलेखा की तरह बढ़ने वाली वह लोगों के नयनों और मन का हरण करने वाली बनी | सीता का राम से विवाह बाद में 'वह रूपवती है' यह विचार कर पिता जनक ने स्वयंवर का आदेश दिया। बहुत से राजपुत्र एकत्र हुए। उस समय ( उस कन्या ) सीता ने राम को वरा। दूसरे कुमारों को भी धन सम्पत्ति सहित कन्याएं दी गई उन्हें लेकर दशरथ अपने घर को माये । कैकेयी को प्राप्त दशरथ से २ बरदान प्रसंग पहले स्वजनोपचार में कुशल कैकेयी से संतुष्ट राजा ने उससे कहा था कि, 'तू वर मांग' उसने कहा - " अभी मेरा वर रहने दो काम पड़ने पर मांयूंगी." एक बार दशरथ का सीमा के राजा के साथ विरोध हो गया। उसके बीच युद्ध में दशरथ पकड़े गये | देवी कैकेयी को कहलवाया गया कि, 'राजा पकड़ लिए गए हैं, इसलिए तुम चली arut ।” वह बोली, 'शत्र यदि प्रयत्न करेगा तो भाग जाने पर भी मुझे पकड़ लिया जायेगा इसलिए में खुद भी युद्ध करूंगी। मै हारू नहीं तब तक कौन भागा गिना जा सकता है ?" इस प्रकार कह कर कवच पहन, रथ में बैठ, छत्र से युक्त हो वह युद्ध करने चली । 'जो वापिस मुड़े उसे मार
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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