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________________ १३६ भारतीय साहित्य में सीताहरण प्रसंग और सीता भय-विह्वल । उनकी विग्रह मूलक यहां चन्द्रनखा है। दोनों ही रावण की बहिने हैं प्रकृति के लिए वे उन्हें बिउंवित भी करती हैं। एक सधवा भौर दूसरी विधवा लेकिन दोनों ही चन्द्रनखा भी प्रतिशोध के लिए सव्यसाची के स्वरिणी। विकलांग करने का प्रसंगन रामायणों सहश प्रतिज्ञा करती है। लक्ष्मण सामुद्रिक शास्त्र में नहीं है। हिन्दू रामायणों में रणभार राम के के शाता है और चन्द्रनला को कुलक्षिणी मानते हैं, कंधों पर है और जैन रामायणों में लक्ष्मरस के कंषों इस कारण उसका वरण नहीं करते । लेकिन पर । सूर्यहास की उपलब्धि समरानुक्रम को पूरा उसके प्रचारण पर वे अपने पौरुष को संयत भी नहीं करती है--एक पोर चन्द्रहास खड्ग है और दूसरी रख पाते । राज परिवार की अन्य स्त्रियां चन्द्रनखा भोर सूर्य हास । यही वासुदेव प्रतिवासुदेव का अंतर के रहस्य को ताड़ जाती हैं और दूषण युद्ध का प्रति है। सभी वर्णन जातिगत वैशिष्ट्य से पूर्ण है षेध करता है। रावण के लेख में सीता के सौंदर्य और समूचा कार्यकलाप वैयक्तिक मुक्ति तथा का भी वर्णन है। रावण लक्ष्मण के पराक्रम की धार्मिक प्राग्रह से संचालित । हिन्दू गृहस्थ काम मुक्त कंठ से संस्तुति करता है और राम की सीता मोर अर्थ को धर्ममय बना कर मोक्ष का मार्ग री के कारण प्रसा। प्रवलोकिनी विद्या भी प्रशस्त करता है। वहां उन्नयन है और विदेह मुक्ति। रावण को समझाती है लेकिन रावण सीता पर जैन गृहस्थ धर्म की छत्र छाया में काम का प्रशमन पवत शिव रूप को न्यौछावर कर देता है। मार्ग कर जीवनमुक्ति का प्रयत्न कर रहा है। अतः जैन में रावण को नामण्डस के अनुचर से भी युद्ध करना कथाकार कर्म और भाव दोनों का समन्वय कर पडता है। वह सीता को नंदनवन में भावासित कर चलते हैं। नगर को चला जाता है।' उत्तर पुराण की एक प्रतिरिक्त दिगंबर परंपरा . ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी लक्ष्मण द्वारा खर है। इसके अनुसार कंथा सूत्र निम्न प्रकार है:दूषण के वध और शूर्पणखा के पूर्व जन्म का नारद से सीता के सौंदर्य का वर्णन सुनकर उल्लेख है। उदात्तराथव में सीताहरण का रूप रावण उसे हर लाने का संकल्प करता है। सीता इस प्रकार है कि लक्ष्मण कनक मृग की खोज में के मन की परीक्षा के लिए शूर्पणखा (चन्द्रनखा) को चले जाते हैं और रावण प्राश्रम के कुलपति का बनारस भेजा जाता है। वह सीता का सतीत्व रूप धारण कर राम और सीता के पास पहुंचता देखकर रावण देखकर रावण से कहती है कि सीता का मन है तथा राम की निदा करता है कि उन्होंने लक्ष्मण चलायमान करना असंभव है । जब राम और सीता चलायमान करत को मग के पीछे भेज दिया है। उसी समय एक वाराणसी के निकट मित्रकट वारिका में बदमवेशी राक्षस पाकर यह समाचार देता है कि करते हैं, तब मंत्री मारीच स्वण मुग का रूप कनक मृग राक्षस रूप में बदल कर लक्ष्मण को धारण कर राम को दूर ले जाता है और रावण ले जा रहा है । इस पर राम सीता को रावण के राम का रूप धारण कर सीता के पास पहुंचता संरक्षण में छोड़कर लक्ष्मण की सहायता के लिए है और कहता है कि मैंने मृग को महल भेज दिया चले जाते हैं। है और उनको पालकी पर चढ़ने की माशा देता निष्कर्षः- यहां भी समग्र प्ररंग रसाभास से है। यह पालकी वास्तव में पुष्पक है जो सीता को उपकृत है। हिन्दू रामायणों में शूर्पणखा थी और लंका ले जाती है। रावण सीता का स्पर्श नहीं १. पउमपरिउ-३६-३८ सर्ग २. ब्रह्मवर्त पुराण कृष्ण जन्म खण्ड प्रध्याय ६२
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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