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बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्य
सही मानी जाबे और कौन नहीं। इसके लिये नक्षत्र दिये गये हैं। गर्भकल्याणक के तिथि नक्षत्र पौर नहीं तो भी यह तो अवश्य विचारणीय है कि नहीं लिखे हैं । इस प्रप में लिखी तिषियों के साथ उस तिथि के साप जो नक्षत्र लिखा है वह उस अब हम इसमें लिखे नक्षत्रों का मिलान करते हैं तो तिथि से मेल खाता है या नहीं। अगर मेल नहीं अनेक जगह तिथियों के साप नक्षत्र नहीं मिलते खाता है तो अवश्य ही या तो वह तिथि गलत है है। नमूने के तौर पर नीचे की तालिका देखियेया वह नक्षत्र गलत है । इसमें कोई संदेह नहीं। जन्म कल्याणकक्योंकि ज्योतिषशास्त्र का यह नियम है कि हर संभवनाथ-मगसर सुद १५ ज्येष्ठा । सुमतिमाथमास की पूर्णिमा या उसके अगले पिछले दिन में बावरण सुद ११ मघा । उस मास का नाम वाला नक्षत्र जरूर भाता है। दीक्षा कल्याणकजैसे चैत्र मासकी पूणिमा या उसके अगले पिछले
धर्मनाथ-भादवासुद १३ पुष्य । पुष्पदंत-पोस दिन में चित्रा नक्षत्र मावेगा। वैशाख की पूणिमा सूद ११ अनुराधा । को विशाखा नक्षत्र प्रावेगा। ज्येष्ठा की पूर्णिमा
झान कल्याणक-. को ज्येष्ठा नक्षत्र पावेगा। इत्यादि । वास्तव में
सुमतिनाथ-पोस सुद १५ हस्त । विमलनाथमासों के नाम ही मासांत में माने वाले नक्षत्रों के
पोस सुद १० उत्तराषाढ । कारण पड़े हैं । जिस पूर्णिमा को जो नक्षत्र है उसके प्रागे के नक्षत्र जिस क्रम से उनके नाम है। मोक्ष कल्याणकउसी क्रम से अगली प्रत्येक तिथि में प्रायः प्रत्येक
विमलनाथ-असाढ मुद ८ पूर्वभाद्रपद । मल्लि. नक्षत्र नंबर वार माता जावेगा। जैसे चैत्र सद१५ नाथ-फागण बुद ५ भरणी। को चित्रा नक्षत्र है तो वैशाख बुद १० को यात्रिलोक प्राप्ति में ria
त्रिलोक प्रज्ञप्ति में इनके अलावा और भी उसके अगले पिछले दिन में चित्रा के बाद का तिथि नक्षत्र अनमेल है। जिन्हें लेख विस्तार के १० वा नक्षत्र शतभिषा भावेगा । इस हिसाब से भय से यहां हम लिखना नहीं चाहते । उक्त सदा ही तिथियों के साथ किन्ही निश्चित नक्षत्रों तिथियों के साथ उक्त नक्षत्रों की संगति किसी भी का सम्बन्ध पाया जा सकेगा । हाँ कभी कभी एक तरह नहीं बैठ सकती है। अतः त्रिलोक प्राप्ति की या दो नक्षत्रों का प्रागा पीछा भी हो सकता है। ये तिथियां और नक्षत्र परस्पर अवश्य ही गलत हैं इसके लिए कोई सा भी नया पुराणा किसी भी इसमें कोई सन्देह नहीं है । त्रिलोक प्रज्ञप्ति की वर्ष का पंचांग उठाकर देख लीजिए । इस गणना तिथियों के गलत होने में एक दूसरा हेतु भी है । के अनुसार हम जान सकते है कि प्रमुक मास की वह यह है कि त्रिलोक प्रज्ञप्ति में थी मल्लिनाथ प्रमुक तिथि को प्रमुक अमुक नक्षत्र ही हो सकते स्वामी का दीक्षा लिये बाद छदमस्थ काल ६ दिन है। दसरे नहीं। जबकि हमारे यहां कल्याणकों का बताया है। अर्थात दीक्षा लिये बाद ६ दिन में की हरतिथि के साथ नक्षत्र भी दिया गया है तो उनको केवल ज्ञान हमा है। किन्तु इसी त्रिलोक इस कसोटीको लेकर हम क्यों न जांच करलें कि प्रज्ञप्ति में मल्लिनाथ की दीक्षातिथि मगसरसुद ११ किस ग्रंथ की तिथियां उनके साथ में लिखे नक्षत्रों की और केवल ज्ञान तिथि फागण बुद बारस की से मिलती है और किसकी नहीं ? उक्त प्रथों में लिखी है। दोनों में प्रन्तर ढाई मास का पड़ना सबसे प्राचीन त्रिलोक प्रज्ञप्ति ग्रंथ माना जाता है। है जबकि अन्तर पड़ना चाहिए ६ दिन का ही। प्रतः पहिले इसी को जांच करते हैं । इस ग्रंथ में इसी तरह उनमें लिखा अन्य भी कम तीर्थंकरों का चार कल्याणकों की तिथियां और उनके साथ यह घमस्थकाल उनकी तिथियों के साथ मेल नहीं