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पी वह पोंगापंथी है और अाजकल की सोसायटी में नहीं चल सकता। यह कोरा भुलावा है। जो लोग विदेशों की यात्रा करते हैं उन्हों ने वार-बार हमें बताया है कि ऐसे देशों में भी जहां सिगरेट का ग्राम रिवाज है, मांस भक्षण रोज किया जाता है, और शराव पानी की तरह पी जाती है, वहां भी उस भारतीय का अधिक सन्मान होता है जो इन चीजों को छूता तक नहीं।
दूसरी ओर कुछ लोग धर्म के नाम पर नशीली चीजें खिलाने या पिलाने की कोशिश करते हैं। कहते हैं भगवान शंकर भी तो भंग, चरस, गांजा, धतूरा पीते खाते थे, तुम भी खायो तो भगवान शंकर प्रसन्न होंगे । यह सब उन की मनगढंत बातें हैं। वह भोले युवकों को कुमार्ग पर डाल कर अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में रहते हैं। भला सोचो तो भंगही भंग के नशे में कैसा पागल हो कर फिरता है, गंदी बाते बकता है, गंदे काम करता है, नालियों में पड़ा रहता है क्या कभी भगवान शंकर ऐसे कर्म कर सकते हैं। वे तो बड़े दयालु, सहृदय, वीर, पीर बुद्धिमान कहलाते हैं उनका तो नाम ही "शिव" है जिसका अर्थ है "अच्छा" । नशे में पड़ कर कभी कोई आदमी अच्छा बन ही नहीं सकता।