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मायाचारी छोड़ कर मनुष्य को सरल
स्वभाव रखना चाहिए। (४) लोभ-जो चौथा कषाय है, उस को तो
पाप का बाप ही बताया गया है । लोभी अादमी तो अपने फायदे के लिए झूठ भी वोलता है, छल-कपट भी करता है, दूसरे की हत्या भी कर डालता है, चोरी करता है, ठगी करता है । परन्तु उस को कितना भी धन क्यों न मिल जाए उस का लोभ नहीं छूटता और वह भी अधिक धन एकत्रित करने के लिए गंदे से गंदा काम करने के लिए सदा तैयार रहता है । उस के धन की भूख कभी मिटती ही नहीं। इस लिए लोभी न बन कर मनुष्य को
संतोषी वनना चाहिए। अपनी आत्मा को शुद्ध रखने के लिए; दुःख सौर पशान्ति से वचने के लिए और समाज में आदर पाने
लिए इन चार कषायों से जहां तक सम्भव हो सके ‘चने की कोशिश करनी चाहिए।