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को कमजोर पा कर गोंद की तरह उस से चिपक कर बैठ जाता है ।
शुद्ध बनाने में
दूसरा कषाय मान है जिस से मन में अभिमान पैदा होता है । मनुष्य घमण्डी बन कर अपने श्राप को ऊंचा और दूसरों को नीचा समझने लगता है। मित्र भी ऐसे ग्रादमी के शत्रु बन जाते हैं । ऐसे ग्रामी का समाज में भी कोई आदर नहीं होता । इस लिए मान कषाय त्याग कर मनुष्य को विनयशील बनना चाहिए !
( २ ) इसी तरह ग्रात्मा को
( ३ ) तीसरा कपाय है माया यानि छल-कपट । मायाचारी मनुष्य सदा दूसरे को धोखा दे कर, झूठ बोल कर, झांसा दे कर ग्रपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में रहता है । उस से सदा दूसरों को दुख और नुकसान ही पहुंचता है किसी का भला नहीं होता । उस का कोई विश्वास नहीं करता और जब उस का छल कपट दूसरे लोग जान जाते हैं तो उस का बड़ा अनादर होता है, लोग उस के शत्रु वन जाते हैं । इस लिए श्री महावीर दि०जैन वाचनालय
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