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जीवन और कर्म
( चार कषाय ) बोलचाल की भाषा में कषाय शब्द का अर्थ है चेप वाली वस्तु जैसे
पेड़ का गोंद । जो वस्तु किसी एक वस्तु को
दूसरे में चिपकाने का काम करे उसे कषाय कहते हैं । पिछले वर्ष के पाठ में बालकों ने पढ़ा था कि ग्रात्मा का स्वभाव ज्ञान है । परन्तु उस पर कर्मरूपी मैल चिपका रहता है इस लिए उस
का शुद्ध ज्ञान नहीं निखरता और इसी लिए उसे संसार में
आवागमन के बंधन में फंसना पड़ता है । इन कर्मों को श्रात्मा से चिपकाने में जो चीज सहायक होती है उसे ही कषाय कहा जाता है ।
एक सूखे वस्त्र पर यदि मिट्टी गिर जाय तो वह अपने श्राप झड़ जाती है, उस से चिपकती नहीं । परन्तु यदि उस वस्त्र में कोई चिपकनी चीज या चिकनाई लगी हो तो धूल उस से लग कर चिपक जाएगी और कपड़ा मैला हो जाएगा । इसी तरह बिना कपाय के
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